तुलसी स्तोत्र अर्थ सहित | मंगलाष्टक 8 | tulsi stotram

तुलसी स्तोत्र अर्थ सहित | मंगलाष्टक | tulsi stotram

तुलसी भगवान विष्णु को अतिप्रिय है, और इसी कारण भगवान विष्णु की पूजा में तुलसी अनिवार्य है। अनेकों पुराणों में विभिन्न प्रकार से तुलसी का माहात्म्य बताया गया है। तुलसी की सेवा करने वाला भी भगवान विष्णु को अतिप्रिय होता है। भगवान विष्णु की प्रीति के लिये तुलसी की माला ही धारण की जाती है, भगवान विष्णु के मंत्रों का जप तुलसी की माला पर ही किया जाता है। और तो और भगवान विष्णु का तुलसी के साथ विवाह भी किया जाता है जो जन्मार्जित पापों का नाशक भी होता है।

यहां भगवती तुलसी की प्रसन्नता प्रदान करने वाला स्तोत्र (tulsi stotram) दिया गया है एवं तुलसी स्तोत्र का अर्थ भी दिया गया है। साथ ही तुलसी का माहात्म्य भी दिया गया है। एवं तुलसी विवाह में मंगलाष्टक पाठ का विधान होने से मंगलाष्टक भी दिया गया है।

तुलसी स्तोत्र संस्कृत में

पद्मपुराण के अनुसार द्वादशी की रात को जागरण करते हुए तुलसी स्तोत्र को पढ़ना चाहिए। इस दिन भगवान विष्णु जातक के सभी अपराध क्षमा कर देते हैं। तुलसी स्त्रोत को सुनने से भी समान पुण्य मिलता है।

॥ इति श्रीपुण्डरीककृतं तुलसीस्तोत्रं सम्पूर्णम् ॥

तुलसी स्तोत्र हिन्दी में अर्थात तुलसी स्तोत्र (tulsi stotram) का अर्थ

हे जगज्जननि, हे प्रियवल्लभे, आपको नमस्कार है। आपसे ही शक्ति प्राप्तकर ब्रह्मा आदि देवता विश्वका सृजन, पालन तथा संहार करनेमें समर्थ होते हैं ॥१॥

हे कल्याणमयी तुलसी, आपको नमस्कार है। हे सौभाग्यशालिनी विष्णुप्रिये, आपको नमस्कार है। हे मोक्षदायिनी देवि, आपको नमस्कार है। हे सम्पत्ति देनेवाली देवि, आपको नमस्कार है ॥२॥

भगवती तुलसी समस्त आपदाओंसे नित्य मेरी रक्षा करें। इनका संकीर्तन अथवा स्मरण करनेपर ये देवी तुलसी मनुष्यको पवित्र कर देती हैं ॥३॥

प्रकाशमान विग्रहवाली भगवती तुलसीको मैं मस्तक झुकाकर प्रणाम करता हूँ, जिनका दर्शन करके पातकी मनुष्य सभी पापोंसे मुक्त हो जाते हैं ॥४॥

तुलसीके द्वारा यह सम्पूर्ण चराचर जगत् रक्षित है। पापी मनुष्योंके द्वारा इनका दर्शनमात्र कर लेनेसे ये भगवती उनके पापोंका नाश कर देती हैं ॥५॥

हे तुलसी, आपको नमस्कार है, जिन्हें श्रद्धापूर्वक हाथ जोड़कर नमस्कार करनेमात्रसे कलियुगमें सभी स्त्रियॉं, वैश्य तथा अन्य लोग समस्त सुख प्राप्त कर लेते हैं ॥६॥

इस पृथ्वीतलपर तुलसीसे बढ़कर अन्य कोई देवता नहीं है, जिनके द्वारा यह जगत् उसी भाँति पवित्र कर दिया गया है जोसे भगवान् विष्णुके प्रति अनुरागभावसे कोई वैष्णव पवित्र हो जाता है ॥७॥

इस कलियुगमें भगवान् विष्णुके सिरपर अर्पित किया गया तुलसीदल मनुष्यके श्रेष्ठ मस्तकपर सभी प्रकारके कल्याण साधन प्रतिष्ठित कर देता है ॥८॥

समस्त देवगण तुलसीमें निवास करते हैं, अतः लोकमें मनुष्यको सभी देवताओंकी पूजा करनेके साथ ही तुलसीकी भी आराधना करनी चाहिये ॥९॥

हे सब कुछ जाननेवाली तुलसी, आपको नमस्कार है। हे विष्णुप्रिये, हे सर्वसम्पत्तिदायिनि, सभी पापोंसे मेरी रक्षा कीजिये ॥१०॥

पूर्वकालमें श्रेष्ठ तुलसीदलोंसे भगवान् विष्णुकी नित्य उपासना करते हुए बुद्धिमान् पुण्डरीक इस स्तोत्रका गान किया करते थे ॥११॥

तुलसी, श्री, महालक्ष्मी, विद्या, अविद्या, यशस्विनी, धर्म्या, धर्मानना, देवी, देवीदेवमनःप्रिया, लक्ष्मीप्रियसखी, देवी, द्यौ, भूमि, अचला और चला भगवती तुलसीके इन सोलह नामोंका संकीर्तन करनेवाला मनुष्य विशुद्ध भक्ति प्राप्त करता है और अन्तमें विष्णुलोक प्राप्त कर लेता है।

तुलसी, भू, महालक्ष्मी, पद्मिनी, श्री तथा हरिप्रिया इन नामोंसे भी आप प्रसिद्ध हैं। लक्ष्मीकी सखी, सौभाग्यशालिनी, पापोंका नाश करनेवाली, पुण्य देनेवाली, नारदके द्वारा नमस्कृत तथा नारायणके मनको प्रिय लगनेवाली हे तुलसी, आपको नमस्कार है ॥१२-१५॥

तुलसी माहात्म्य

तुलस्याः शृणु माहात्म्यं पापघ्नं सर्व्वकामदम् । यत् पुरा विष्णुना प्रोक्तं तत्ते वक्ष्याम्यशेषतः ॥ 
सम्प्राप्तं कार्त्तिकं दृष्ट्वा नियमेन जनार्द्दनः । पूजनीयो महद्भिश्च कोमलैस्तुलसीदलैः ॥ 
दृष्टा स्पृष्टा तथा ध्याता कार्त्तिके नमितार्च्चिता । रोपिता सेविता नित्यं पापं हन्ति युगार्ज्जितम् ॥ 
अष्टधा तुलसी यैस्तु सेविता द्बिजसत्तम ! युगकोटिसहस्राणि ते वसन्ति हरेर्गृहे ॥ 
रोपिता तुलसी यावत् कुरुते मूलविस्तृतम् । तावद्युगसहस्राणि तनोति सुकृतं हरिः ॥

तुलसीदलपुव्पाणि यो दद्याद्धरये मुने ! कार्त्तिके सकलं पापं सोऽत्र जन्मार्ज्जितं दहेत् ॥
रोपिता तुलसी यावत् वर्द्धते वसुधातले । तावत्कल्पसहम्ग्नणि विष्णुलोके महीयते ॥ 
यत् फलं सव्वः सर्व्वपत्रेण यत् फलम् । तुलस्यास्तद्दलार्द्धेन पुण्यं स्याद्बिष्णुपूजने ॥
तुलसीगन्धमादाय यत्र गच्छति मारुतः । दिशो दश पुनात्याशु भूतग्रामांश्चतुर्व्विधान् ॥
तुलसीकाननोद्भूता छाया यत्र भवेन्मुने ! तत्र श्राद्धं प्रदातव्यं पितॄणां तृप्तिहेतवे ॥

तुलसीवीजनिकरो यस्मिन् पतति वै मुने ! तत् स्थानं परमं ज्ञेयं पितॄणां प्रीतिवर्द्धनम् ॥ 
यस्मिन् गृहे द्बिजश्रेष्ठ ! तुलसीतलमृत्तिका । तत्रैव नोपसर्पन्ति भूतले यमकिङ्कराः ॥
तुलसीमृत्तिकालिप्तो यदि प्राणान् परित्यजेत् । यमेन नेक्षितुं शक्यो मुक्तः पापशतैरपि ॥
तुलसीमृत्तिकालिप्तं ललाटं यस्य दृश्यते । कुलं स्पृशति नो तस्य कलिर्मुनिवरोत्तम ! ॥ 

यः कश्चित्तुलसीमूले कार्त्तिके केशवप्रियः । दीपं ददाति विप्रेन्द्र ! स लभेद्वैष्णवं पदम् ॥
तुलसीकाननञ्चैव गृहे यस्यावतिष्ठते । तद्गृहं तीर्थभूतं हि नायान्ति यमकिङ्कराः ॥
दर्शनं नर्म्मदायास्तु गङ्गास्नानं तथैव च । तुलसीवनसं सर्गः सममेतत्त्रयं स्मृतम् ॥ 
रोपणात् पालनात् सेवाद्दर्शनात् स्पर्शनान्नृणाम् । तुलसी दहते पापं वाङ्मनःकायसञ्चितम् ॥

तुलसीमञ्जरीभिर्यः कुर्य्याद्धरिहरार्च्चनम् । न स गर्भगृहं याति मुक्तिभागी भवेन्नरः ॥ 
पुष्कराद्यानि तीर्थानि गङ्गाद्याः सरितस्तथा । वासुदेवादयो देवा वसन्ति तुलसीदले ॥
तुलसीमञ्जरीयुक्तो यस्तु प्राणान् विमुञ्चति । यमो न वीक्षितुं शक्तो युक्तः पापशतैरपि ॥

॥ इति पाद्मोत्तरखण्डम् ॥

उपरोक्त तुलसी स्तोत्र, तुलसी माहात्म्य व मंगलाष्टक एक ही जगह उपलब्ध होने से यह संग्रह अतिउपयोगी हो जाता है एवं तुलसी विवाह में विशेष रूप से उपयोगी सिद्ध होता है।

कर्मकांड विधि में शास्त्रोक्त प्रमाणों के साथ प्रामाणिक चर्चा की जाती है एवं कई महत्वपूर्ण विषयों की चर्चा पूर्व भी की जा चुकी है। तथापि सनातनद्रोही उचित तथ्य को जनसामान्य तक पहुंचने में अवरोध उत्पन्न करते हैं। एक बड़ा वैश्विक समूह है जो सनातन विरोध की बातों को प्रचारित करता है। गूगल भी उसी समूह का सहयोग करते पाया जा रहा है अतः जनसामान्य तक उचित बातों को जनसामान्य ही पहुंचा सकता है इसके लिये आपको भी अधिकतम लोगों से साझा करने की आवश्यकता है।

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