Tulsi vivah : जानिये तुलसी विवाह कैसे किया जाता है

Tulsi vivah kab hai : जानिये तुलसी विवाह कैसे किया जाता है

तुलसी विवाह की एक विशेष विधि है और विवाह शब्द का प्रयोग होने से ही यह ज्ञात होता है कि इसकी विशेष विधि भी होगी। कर्मकांड की जानकारी अंतर्जाल पर प्रायः वो लोग आलेख/विडियो के माध्यम से दे रहे हैं जिन्हें कर्मकांड का क भी ज्ञात नहीं होता किन्तु समस्या यह है कि षड्यंत्रकारी उसका प्रचार-प्रसार भी बहुत ही करते हैं। यदि शास्त्रोक्त विधि बताई जाय तो उसके प्रसार में अड़चन ही उत्पन्न करते हैं। इस आलेख में तुलसी विवाह की शास्त्रोक्त जानकारी देते हुये सप्रमाण विश्लेषण किया गया है।

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Tulsi vivah : जानिये तुलसी विवाह कैसे किया जाता है

तुलसी विवाह एक विशेष विधि द्वारा संपन्न किया जाता है। कर्मकांड को घात पहुँचाने वालों की संख्या में अपार वृद्धि हुयी है और अंतर्जाल की विशेषता है कि वो सनातनद्वेष के कारण इनको ही विशेष रूप से प्रचारित-प्रसारित भी करता है। तुलसी विवाह के कर्मकांड अर्थात विधि की जहां तक बात है तो इसमें विवाह विधि का ही अनुसरण किया जाता है एवं तुलसी रूपी कन्या का विष्णु रूपी वर को दान किया जाता है। बहुत सारे आलेख/विडियो में मंत्रों का लोप कर दिया गया है और प्रदर्शन मात्र को ही तुलसी विवाह कहकर बताया जा रहा है।

ऐसे प्रदर्शन मात्र का कर्मकांड में कोई महत्व नहीं होता है। कर्मकांड में प्रत्येक कर्म की विशेष विधि होती है और उस विधि के अनुसार ही संपादन करने में उस कर्म के फल की सिद्धि होती है, प्रदर्शन मात्र से फल की सिद्धि नहीं होती अपितु दोष ही होता है। प्रदर्शन मात्र को ही आडम्बर कहा जाता है।

अतः श्रद्धालुओं को आडम्बर से बचना चाहिये और यदि तुलसी विवाह करना हो तो विधि पूर्वक भली-भांति ही करना चाहिये, अन्यथा आडम्बर करने वालों का अनुगमन करना धर्मपालन नहीं हो सकता और पुण्यकारक होने के स्थान पर दोषद ही सिद्ध होता है।

Tulsi vivah kab hai : जानिये तुलसी विवाह कैसे किया जाता है
Tulsi vivah : तुलसी विवाह कैसे किया जाता है

मंडप

तुलसी विवाह हेतु लगभग हर कोई मंडप के नाम पर इक्षुदंड (गन्ने) से मंडप निर्माण की विधि कही-लिखी जा रही है। मंडप का तात्पर्य विवाह मंडप है न कि 4 गन्ना अटकाना। जिसे सामर्थ्य न हो उसके लिये आडम्बर करने की कोई अनिवार्यता नहीं कही गयी है अर्थात न करे। सामर्थ्यहीनों को अन्य किसी के द्वारा किये गये विधिपूर्वक तुलसी विवाह में सम्मिलित होने मात्र से ही तुलसी विवाह का फल प्राप्त हो सकता है अतः आडम्बर करने की अपेक्षा अन्य सामर्थ्यवानों को सविधि तुलसी विवाह करने के लिये प्रेरित करना और उसमें सम्मिलित होना ही अधिक श्रेयस्कर सिद्ध होता है।

तुलसी विवाह हेतु मंडप विधान के अनुसार ही मंडप निर्माण करें और इक्षुदंड के माध्यम से चांदनी अटकाने की विधि मंडप के भीतर पूजा चौकी पर करें। मंडप स्थापन व पूजन विधि देखें

ब्राह्मण की आवश्यकता

तुलसी विवाह विधि में एक मात्र ही नहीं पांच ब्राह्मण का विधान है – “ब्राह्मणं देशिकं चैव चतुरश्च तथार्त्विजः”, पांच ब्राह्मण का सामर्थ्य न होने पर एक ब्राह्मण अनिवार्य होते ही हैं। इस प्रकार जो कोई भी अंतर्जाल पर ब्राहण के बिना तुलसी विवाह करने की सरल विधि बताता है वह अज्ञानी है, शास्त्रों का कभी अध्ययन नहीं करता है और इसी कारण एक दूसरे का स्वांग करते हुये आडम्बर करने के लिये जनमानस को प्रेरित करता है और भ्रमित करते हैं कर्मकांड के ऊपर आघात करता है।

ऐसे लोगों का तिरष्कार/निंदा करने की आवश्यकता है जो स्वयं तो पापात्मा है ही जनमानस को भी पापाचार के लिये प्रेरित करता है। शास्त्र वचन का उल्लंघन करना पाप ही होता है। जो भी आस्थावान धर्म की भावना से तुलसी विवाह करना चाहते हैं उन्हें इन पाखंडियों से दूर रहने की भी आवश्यकता है और शास्त्रोक्त विधि के अनुसार ही विधि-विधान से तुलसी विवाह करना चाहिये। पांच ब्राह्मण रखने का सामर्थ्य हो तो पांच ब्राह्मण को रखें यदि पांच ब्राह्मण रखने का सामर्थ्य न हो तो न्यूनतम एक ब्राह्मण रखें। ब्राह्मण से रहित कर्मकांड का कोई महत्व नहीं होता है।

  • किसी भी कर्म को करने के लिये सर्वप्रथम ब्राह्मण की आज्ञा आवश्यक होती है, क्योंकि ब्राह्मण की आज्ञा के बिना कर्म में अधिकार ही प्राप्त नहीं होता यही शास्त्रों का निर्णय है।
  • ततपश्चात यदि स्वयं सभी मंत्र और विधियां जानते भी हों अर्थात स्वयं कर्मकांडी भी हो तो भी दान, दक्षिणा, ब्राह्मण भोजन आदि के लिये ब्राह्मण की अनिवार्यता होती है।
  • दक्षिणा से रहित यज्ञ निष्फल होता है, किसी भी कर्म के अंत में ब्राह्मण भोजन अनिवार्य होता है।
  • दान के अतिरिक्त यज्ञ में प्रयुक्त व शेष सामग्री भी आचार्य का ही होता है, आचार्य से हीन कर्म निर्मूल होता है।

धर्म-कर्मकांड सामग्री प्रस्तुत करने के लिये गूगल-यूट्यूब आदि के लिये आवश्यक तथ्य

उपरोक्त दो तथ्यों से यह सिद्ध हो जाता है कि अंतर्जाल पर जितने भी अज्ञानी (अत्यल्प विद्वानों को छोड़कर) तुलसी विवाह की विधि का आलेख-विडियो प्राप्त होते हैं और प्रचारित-प्रसारित भी किये जाते हैं सबके-सब निर्मूल हैं, किसी ने भी शास्त्र का अध्ययन नहीं किया होता है किन्तु ज्ञानी बाबा बनकर श्रद्धालुओं को भ्रमित कर रहा है और इसमें गूगल आदि भी प्रोत्साहन ही करते हैं क्योंकि इससे आडम्बर/पाखंड को बढ़ावा मिलता है।

आप सर्च करके देख सकते हैं आपको शास्त्रोक्त विधि कठिनता से ही कदाचित एक-दो मिले अन्यथा सबके-सब भ्रामक ही हैं। गूगल-यूट्यूब आदि को सनातन धर्म-कर्मकांड सम्बन्धी सामग्री दिखाने से पूर्व विशेष छन्नी का प्रयोग करने की आवश्यकता है जिससे भ्रामक सामग्री न दिखे, वो सामग्री दिखे जिसमें शास्त्रोक्त विधि प्रमाण सहित बताई गयी हो।

सरकार से अपेक्षा

अंतर्जाल पर धर्म-कर्मकांड से सम्बंधित सामग्रियों की प्रमाणिकता के लिये सरकार से भी अपेक्षा है। क्योंकि जब तक सरकार हस्तक्षेप करते हुये नीति का निर्माण नहीं करेगी तब-तक सनातन से द्वेष रखने वाले संचार तंत्र से शास्त्रोक्त और प्रमाणित सामग्री के प्रस्तुतिकरण की अपेक्षा की ही नहीं जा सकती। सनातन के विरुद्ध जो सामग्री हो उसका प्रचार-प्रसार करना ही इन संचार तंत्रों की नीति है और अनियंत्रित रूप से कर भी रहे हैं। इस विषय में सरकार को दो काम करने की आवश्यकता है : सनातन सामग्री अन्वेषण मंडल का निर्माण 2. धर्म-कर्मकांड सामग्री नीति का निर्माण

1. सनातन सामग्री अन्वेषण मंडल का निर्माण

सरकार (भारत सरकार) को सर्वप्रथम एक सनातन सामग्री अन्वेषण मंडल का निर्माण करना चाहिये जो अंतर्जाल पर उपलब्ध सनातन धर्म-कर्मकांड संबंधी सामग्रियों का अवलोकन करे, शास्त्र-सम्मत है अथवा नहीं इसका विचार करे और जो सामग्री शास्त्र विरुद्ध हो उसे अंतर्जाल से हटाने का भी कार्य करे। एवं उससे पूर्व नीति निर्माण हेतु सरकार को सहयोग प्रदान करे।

2. धर्म-कर्मकांड सामग्री नीति का निर्माण

सरकार को सनातन धर्म-कर्मकांड के विषय में अंतर्जाल पर समाग्री उपलब्ध करने के लिये एक ठोस नीति निर्माण की आवश्यकता है जिससे विद्वान ही सामग्री प्रस्तुत कर सकें जो मूर्ख हैं और सभी विषयों में कर्मकांड को ताक पर रखकर अनाप-सनाप कुछ भी प्रस्तुत कर रहे हैं वो न कर सकें। धर्म-कर्मकांड से संबंधित सामग्रियां विद्वान ही प्रकाशित करें अथवा कोई भी करे वो शास्त्र सम्मत हो यह अनिवार्य करने के लिये सनातन सामग्री अन्वेषण मंडल का निर्माण करके उसे जांच करने और शास्त्र विरुद्ध सामग्रियों को अंतर्जाल मिटवाने का भी अधिकार प्रदान करना चाहिये।

इसके साथ ही मीडिया भी स्वयं आत्मसुधार करने वाली नहीं है, इसके लिये भी सरकार को ही नियम निर्धारण करना चाहिये। धर्म-कर्मकांड संबंधी किसी भी सामग्री हेतु मीडिया विशेष विद्वानों को नियुक्त करे, और यदि नहीं कर सकती तो जनमानस को अनाप-सनाप सामग्री प्रदान करना बंद करे, पुरानी सामग्रियां भी मिटाये, क्योंकि मीडिया ने धर्म और कर्मकांड के संबंध में अप्रमाणिक सामग्रियों का ही अम्बार लगा रखा है।

प्रमाण

गूगल-यूट्यूब आदि के सनातन द्वेष पूर्वक पाखंड-आडम्बर को प्रोत्साहित-प्रसारित करने का प्रमाण भी है और इसे कोई भी जांच सकता है। संपूर्ण कर्मकांड विधि और इसी भांति अन्य जो भी धर्म-कर्मकांड की शास्त्रोक्त सामग्रियां प्रकाशित करते हैं गूगल-यूट्यूब उन सामग्रियों को प्रस्तुत न करके जो मूर्खों द्वारा प्रकाशित की जाने वाली भ्रामक सामग्रियों को ही वरीयता प्रदान करते हुये प्रस्तुत करता है। और

इसे “तुलसी विवाह विधि” ही सर्च देखा जा सकता है, संभव है कि यह आलेख आपको सर्च करने पर दिख जाये किन्तु इसके अतिरिक्त अन्य जो भी सामग्रियां दिखेंगी सबकी-सब भ्रामक ही है, किसी भी सामग्री में न तो कोई प्रमाण दिया गया है और न ही शास्त्रोक्त विधि बताई गयी है। तुलसी विवाह की भांति ही हवन, विवाह, श्राद्ध आदि को भी सर्च करके देखा जा सकता है कुछ ही सामग्री ऐसे होते हैं जो शास्त्रसम्मत होते हैं अधिकांश सामग्रियां अप्रामाणिक ही होती है।

प्रामाणिक तुलसी विवाह विधि

अब हम प्रामाणिक तुलसी विवाह विधि की चर्चा करेंगे अर्थात सभी विधियों को समझेंगे। प्रामाणिक कथन का तात्पर्य है शास्त्र में जो विधि बताई गयी है उस प्रमाण के अनुसार तुलसी विवाह की पूरी विधि। और इसके लिये हम सर्वप्रथम शास्त्र के प्रमाण को ही देखेंगे तत्पश्चात उस प्रमाण का विश्लेषण करते हुये पूरी विधि को हिन्दी में समझेंगे। यह प्रमाण विष्णु यामल से लिया गया है जो कर्मकांड रत्नाकर में भी दिया गया है :

व्रतोद्यापन चन्द्रिका में प्राकांतर से इस प्रकार दिया गया है जिसमें 6 श्लोक पूर्वोक्त हैं और तत्पश्चात अगले श्लोक हैं :

इस प्रकार प्रमाण के माध्यम से ज्ञात होता है कि तुलसी विवाह की बहुत विस्तृत विधि है और विवाह की भांति ही सभी विधियां संपन्न की जाती है जिसमें वर स्वयं विष्णु होते हैं और कन्या तुलसी होती है। आगे प्रमाणानुसार तुलसी विवाह की विधि को हिन्दी में समझना भी आवश्यक है :

विवाह स्थल

सर्वप्रथम विवाह स्थल का वर्णन करते हुये कहा गया है नदी-तालाब आदि जलाशय के तट पर अथवा तुलसीवन अथवा घर में करे – “आदावेवाथ तुलसीवने वा स्वगृहेऽपि वा।” इस प्रकार घर में भी किया जा सकता है किन्तु घर तृतीय क्रम पर आता है यह भी स्मरण रखे।

तुलसी की आयु

“मासत्रसेण संवर्ध्यां ततो यजनमारभेत्” – तीन माह तुलसी की सेवा करके चतुर्थ माह में तुलसी विवाह करे। इस प्रकार स्पष्ट होता है कि चार माह पूर्व किसी सुन्दर बांस की टोकरी में तुलसी का रोपण करे और तीन माह पुत्री की भांति पालन करे अर्थात नित्य पूजा करे, दोनों समय भोग लगाये, सायंकाल दीप दिखाये आदि। कार्तिक में तुलसी विवाह करने वाला हरिशयनी एकादशी के दिन तुलसी लगाये।

विवाह मुहूर्त

तत्पश्चात विवाह मुहूर्त का वर्णन करते हुये कहा गया है कि “सौम्यायने प्रकर्तव्यं गुरुशुक्रोदये तथा। अथवा कार्तिके मासि भीष्मपंचदिनेऽपि वा ॥ वैवाहिकेषु ऋक्षेषु पूर्णिमायां विशेषतः।” सौम्यायन में जब शुद्ध समय हो अर्थात गुरु-शुक्र उदित हों तब विवाह नक्षत्र देखकर विवाह करे, अथवा कार्तिक मास में भीष्मपंचक (एकादशी से पूर्णिमा तक) में करे।

इस प्रकार कार्तिक में करने पर विशेष मुहूर्त की आवश्यकता नहीं होती है किन्तु तीन माह पूर्व अर्थात श्रावण मास में ही तुलसी रोपण करे और तीन महीने उनका कन्या की भांति विशेष ध्यान रखते हुये पालन करे। कार्तिक मास के अतिरिक्त अन्य माह में मुहूर्त संबंधी विशेष विचार भी करे। अधिकतर कार्तिक मास में ही देवोत्थान एकादशी के दिन तुलसी विवाह करने का व्यवहार पाया जाता है।

मंडप निर्माण

तत्पश्चात मंडप निर्माण की चर्चा की गयी है और मंडप का तात्पर्य मंडप ही है जो ऊपर बताया जा चुका है – “मंडपं कारयेत्तत्र कुंडवेदी विवाहवत्” अर्थात जिस प्रकार विवाह में मंडप, वेदी आदि बनायी जाती है उसी प्रकार तुलसी विवाह में भी मंडप वेदी आदि का निर्माण करे। मंडप के चारों तोरणों पर शंख, चक्र, गदा, पद्म लगाकर उसकी भी पूजा करे। गन्ने का प्रयोग पूजा की चौकी में चांदनी बांधने के लिये किया जा सकता है न कि गन्ने का ही मंडप होता है।

मंडप के छत का निर्माण गन्ने के पत्ते से किया जा सकता है। अर्थात यह सिद्ध होता है कि चार गन्ने में जो चांदनी बांधकर मंडप की बात करते हैं वह अनुचित है व उसे मंडप नहीं कहा जा सकता है।

ब्राह्मण की आवश्यकता

“ब्राह्मणाश्च शुचिन्स्नातान् वेदवेदाङ्गपारगान्। ब्राह्मणं देशिकं चैव चतुरश्च तथार्त्विजः ॥” ब्राह्मण का वर्णन करते हुये भी बताया गया है कि मुख्य आचार्य वेद-वेदांग के ज्ञाता विद्वान ब्राह्मण हों, कर्मकांड रत्नाकर में ऐसा भी विश्लेषण किया गया है कि कुटुंब के ब्राह्मण हों, अर्थात कुटुंब के ब्राह्मण के शालिग्राम अथवा कृष्ण, विष्णु प्रतिमा को वर बनाये और जिस प्रकार तुलसी विवाह करने वाला माता-पिता की भूमिका में होता है उसी प्रकार कुटुम्बी ब्राह्मण परिवार को वर के माता-पिता की भूमिका में नियुक्त करे। इसके साथ ही देशिकं अर्थात अपने पुरोहित को और चार ऋत्विज को भी नियुक्त करे।

इस प्रकार प्रमाणानुसार कुल 6 ब्राह्मण नियुक्त होंगे। अब सोचने की बात है जो बिना ब्राह्मण के स्वयं ही तुलसी विवाह का विधान बताते हुये आलेख-विडियो प्रकाशित कर रहे हैं और गूगल-यूट्यूब उन्हीं को वरीयता से प्रस्तुत भी करता है वह शास्त्रसम्मत नहीं है मूर्खों का भ्रम है और जनमानस को भ्रमित किया जा रहा है।

यदि आप सुयोग्य-विद्वान ब्राह्मणों के द्वारा सविधि तुलसी विवाह करना चाहते हैं तो हमसे संपर्क कर सकते हैं – 7992328206

ग्रहयज्ञ

“ग्रहयज्ञं पुरः कृत्वा” – यहां तुलसी विवाह में ग्रहयज्ञ पूर्व ही करने का प्रमाण है अर्थात विवाह से पूर्व ही ग्रहयज्ञ विधि पूर्वक करे। तत्पश्चात मातृका पूजा करे।

मातृका पूजन व नान्दीमुख श्राद्ध

मातृणां यजनं तथाकृत्वा नान्दीमुखश्राद्धं” – मातृका पूजन के पश्चात् नान्दीमुख श्राद्ध करे, यहां ध्यान देने का विषय यह है कि नान्दीमुख श्राद्ध पूर्वाह्न में ही होता है अतः नान्दीमुख श्राद्ध पूर्वाह्न में ही करे न कि रात्रि में। मातृका पूजन नान्दीमुख श्राद्ध का ही पूर्वांग है अस्तु नान्दीमुख श्राद्ध का भी लोप न करे।

प्रतिमा स्थापन

तत्पश्चात सुर्वण की विष्णु प्रतिमा का स्थापन करे। यहां अन्यत्र शालिग्राम, अश्वत्थ वृक्ष आदि को भी वर बनाने का विधान मिलता है एवं स्थापन से वाग्दान-वरवरण (सगुन-तिलक) आदि की विधि का भी विधान कर्मकांड रत्नाकर में बताया गया है। “सौवर्णं स्थापयेद्धरिम् – कृत्वा च रौप्यां तुलसीं” भगवान विष्णु की स्वर्ण प्रतिमा और चांदी की तुलसी स्थापित करे। अब यहां विष्णु प्रतिमा के संबंध में शालिग्राम, कृष्ण प्रतिमा आदि का भी विधान पाया जाता है एवं चांदी की तुलसी का तात्पर्य चांदी के कुछ तुलसी पत्र बनाकर तुलसी वृक्ष में संलग्न करना हो सकता है क्योंकि विवाह तो तुलसी वृक्ष से ही होगा।

विवाह लग्न

“लग्नं त्वस्तमिते रवौ” – यहां विवाह लग्न को लेकर कहा गया है कि अस्तंगत सूर्य का लग्न ग्रहण करे। अर्थात जब सूर्य अस्त हों उसी लग्न में स्थापन करे। स्थापन का तात्पर्य प्रतिमा/शालिग्राम का स्थापन है व पूजन आरंभ है। प्रतिमा स्थापन हेतु सर्वतोभद्र मंडल आदि पूर्व में ही निर्माण कर ले। यदि देवोत्थान एकादशी को तुलसी विवाह किया जाता है तो उससे पूर्व भगवान विष्णु का उत्थापन भी किया जाता है और तत्पश्चात विवाह। इस कारण देवोत्थान एकादशी के दिन सूर्यास्त वाला लग्न ग्रहण नहीं हो सकता।

तुलसी कन्यादान

“संपूज्यालंकृतां तां च प्रदद्याद्विधिना हरेः” – विवाह से पूर्व प्रथमतया अन्य पूर्वक्रिया करके भगवान विष्णु व तुलसी की षोडशोपचार आदि विधि से पूजा करे। तुलसी को अलंकृत करे अर्थात वस्त्र-आभूषण आदि से अलंकृत करे। जिस प्रकार कन्या के विवाह में कन्या को अलंकृत किया जाता है उसी प्रकार एवं अलंकृत तुलसी कन्यादान की विधि से भगवान विष्णु को दान करे। यहां सम्पूज्य का तात्पर्य वरार्चन है, अर्थात षोडशोपचार पूजन करने के उपरांत वरार्चन विधि से भगवान विष्णु रूप वर का पूजन करके फिर तुलसीरूपी कन्या का दान करे। इसकी विधि पुनः आगे विस्तार से बताई गयी है।

वरार्चन विधि

साधुमुञ्चारयेत्पूर्वं त्वं सोम विष्टरं तथा। ये तीर्थानीतिमन्त्रेण पादप्रक्षालनं तथा ॥
ये वृक्षेष्वितिमन्त्रेण अर्घे दद्याद्यथाविधि। मधुव्वातेत्यृचेनैव मधुपर्कं समर्पयेत् ॥
वस्त्रयुग्मेन संवेष्ट्य कार्यं कामदुधेति च। यज्ञोपनीतीमन्त्रेण ब्रह्मसूत्रं समर्पयेत् ॥

यहां वरार्चन की विधि और मंत्र का वर्णन किया गया है। जिस प्रकार वर को “साधु भवान्” मंत्र से बैठाया जाता है उसी मंत्र से वररूपी भगवान को भी स्थापित करे।

  • तत्पश्चात विष्टर वाले मंत्र से विष्टर प्रदान करे।
  • “ये तीर्थानि” मंत्र से पाद्य प्रदान करे।
  • “ये वृक्षेषु” मंत्र से अर्घ दे।
  • “मधुव्वाता” मंत्र से मधुपर्क प्रदान करे।
  • “वसोः पवित्रमसि” मंत्र से युग्म वस्त्र प्रदान करे।
  • “यज्ञोपवीतं” मंत्र से यज्ञोपवीत प्रदान करे।
  • “यदाबध्नन्” मन्त्र से कंकण बांधे।

गोत्रोच्चार

वैयाघ्रपाद्‌गोत्राय वासुदेववराय च। जातूकर्ण्यसगोत्राणां तां तुलसीं च समर्पयेत् ॥
एवमेव तुलस्याश्च वस्त्राभरणानि दापयेत्। आदाय माधवं विष्णुं तुलस्याः सन्निधौ न्यसेत् ॥

कन्यादान में गोत्रोच्चार की भांति ही तुलसी रूपी कन्यादान भी गोत्रोच्चारण करके करे जिसके लिये वररूपी वासुदेव के गोत्र में वैयाघ्रपाद गोत्र और कन्यारूपी तुलसी के लिये जातूकर्ण्य गोत्र का उच्चारण करे। इस प्रकार वस्त्राभरण अर्पित करके तुलसी भगवान विष्णु को अर्पित करे और फिर भगवान विष्णु को तुलसी के निकट (मूल में) स्थापित करे।

पाणिग्रहण विधि

कोदादिति मन्त्रेण करग्रहो विधीयते” – कोददाति मंत्र से पाणिग्रहण विधि को पूर्ण करे, पाणिग्रहण में तुलसी की शाखा को भगवान विष्णु के हाथ में प्रदान (स्पर्श) किया जाता है।

होम

हवन विधि पूर्वाङ्ग व उत्तराङ्ग – पारस्कर गृह्यसूत्र के अनुसार

“कर्त्तव्यश्च ततो होमो विशेषाद्विधि पूर्वकम् – आचार्यो वेदिका कुण्डे जुहुयाच्च नवाहुती” तत्पश्चात होम की विशेष विधि के अनुसार होम करे। आचार्य वेदी/कुंड में नवाहुति पूर्वक होम करे। “ॐ नमो भगवते केशवायनमः स्वाहा – इत्यादि चतुर्विंशति नामभिर्जुहुयात्” : ॐ नमो भगवते केशवायनमः स्वाहा व अन्य 24 नामों से आहुति प्रदान करे।

अग्निप्रदक्षिणा

यजमानः सपत्नीकः सहामात्यैश्च गोत्रजैः। प्रद‌क्षिणां प्रकुर्वीत चतस्रो विष्णुना सह॥
पठेयुः शांतिकाध्यायं तथा वैष्णवसंस्तवान्। गायन्तु मंगलं नार्यो भेरितुर्यादिनी स्वनै॥

हवन के पश्चात् अग्निप्रदक्षिणा की विधि भी पूर्ण करे। सपत्नीक यजमान गोत्र-सहयोगियों सहित होकर भगवान विष्णु और तुलसी लेकर चार बार प्रदक्षिणा करे। शान्त्याध्याय, विष्णुस्तोत्र, आदि का पाठ करे, स्त्रियां मंगलगान करें, भेरी-तुरंग आदि वाद्य बजाने वाला बजाये।

दान

“गां पदं च तथा शय्यामाचार्याय प्रदापयेत्” – तत्पश्चात गोदान, पददान, शय्यादान आदि करके आचार्य को प्रदान करे।

दक्षिणा – ब्राह्मण भोजन

“ऋत्विग्भ्यो दक्षिणां दद्यात्सदन्नैर्भोजयेद् द्विजान्” – ऋत्विज व अन्य ब्राह्मणों को भी दक्षिणा प्रदान करके ब्राह्मण भोजन कराये। इस प्रकार यहां भोजन से पूर्व दक्षिणा देने का विधान भी स्पष्ट होता है। भोजन के पश्चात् भोजन की दक्षिणा जिसे भोजन दक्षिणा कहा जाता है वह दिया जाता है किन्तु कर्मदक्षिणा भोजन से पूर्व ही दिया जाना चाहिये।

दर्शन करना भी पुण्यकारक

“एवं प्रतिष्ठितांदेवीं विष्णुनाचसमर्पयेत्। आजन्मोपार्जितं पापं दर्शनेन प्रणश्यति” – इस प्रकार प्रतिष्ठित देवी विष्णु को अर्पित करे। अर्थात तुलसी विवाह की उपरोक्त विधि से तुलसी विवाह करे। इस विधि से किये जाने वाले तुलसी विवाह का दर्शन करने से भी आजन्म किये हुये पापों का नाश होता है।

अतः यह भी सिद्ध होता है कि दर्शन करना भी पुण्यकारक है और जो इस विधि से तुलसी विवाह न कर सकें वो अन्यों को ही जो समर्थ्यवान हो “सविधि तुलसी विवाह” हेतु प्रेरित करे और दर्शन मात्र करने से ही पुण्य का भागी बने। शास्त्र का उल्लंघन करके स्वेच्छाचार करना पतन का ही कारण बनता है इसलिये विभिन्न माध्यमों से प्रचारित-प्रसारित होने वाली “भ्रामक-विधि” का अनुगामी न बने।

यथाशीघ्र तुलसी विवाह पद्धति (विधि और मंत्र) भी प्रकाशित की जायेगी जिसका लिंक नीचे दिया गया है। कृपया पुनः पधारें।

सारांश : तुलसी विवाह भी एक विस्तृत कर्मकांड है जिसकी विधि का शास्त्र में वर्णन मिलता है और ऊपर शास्त्रोक्त प्रमाण सहित तुलसी विवाह की विधियों का विस्तृत विश्लेषण किया गया है जिससे यह भी सिद्ध होता है कि मूर्ख-मंडली द्वारा अंतर्जाल पर जो ढेरों सामग्रियां प्रचारित-प्रसारित की गयी है वो शास्त्र-सम्मत नहीं है और भ्रामक है। क्योंकि शास्त्रसम्मत का तात्पर्य होता है जो शास्त्र में बताया गया हो। श्रद्धालु जनों को शास्त्रोक्त विधि से ही किसी भी धर्म-कृत्य को संपन्न करना चाहिये।

कर्मकांड विधि में शास्त्रोक्त प्रमाणों के साथ प्रामाणिक चर्चा की जाती है एवं कई महत्वपूर्ण विषयों की चर्चा पूर्व भी की जा चुकी है। तथापि सनातनद्रोही उचित तथ्य को जनसामान्य तक पहुंचने में अवरोध उत्पन्न करते हैं। एक बड़ा वैश्विक समूह है जो सनातन विरोध की बातों को प्रचारित करता है। गूगल भी उसी समूह का सहयोग करते पाया जा रहा है अतः जनसामान्य तक उचित बातों को जनसामान्य ही पहुंचा सकता है इसके लिये आपको भी अधिकतम लोगों से साझा करने की आवश्यकता है।

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