यहां पढ़ें धूमावती माता का कवच स्तोत्र संस्कृत में – dhumavati kavach

यहां पढ़ें धूमावती माता का कवच स्तोत्र संस्कृत में - dhumavati kavach

धूमावती देवी (dhumavati devi) महाप्रलय के पश्चात् अकेली रह जाती हैं, सभी उनका साथ छोड़ जाते हैं। इसलिए अल्पज्ञ उन्हें अशुभ घोषित करते हैं। सनातन धर्म में इसे अध्यात्मिक खोज की चरम स्थिति कहा जाता है। संन्यासी लोग परम संतुष्ट जीव होते हैं- जो भी मिला खा लिया, पहन लिया, जहाँ भी ठहरने को मिला, ठहर लिये, तभी तो धूमावती धुएँ के रूप में हैं : सदैव अस्थिर, गतिशील और व्यग्र। उनका साधक भी व्यग्र रहता है। परन्तु इनके साधकों को आयु भी लम्बी मिलती हैं, कई तो हजारों सालों से अब भी जीवित हैं। यहां धूमावती कवच स्तोत्र (dhumavati kavach) संस्कृत में दिया गया है।

धूमावती देवी (dhumavati devi) महाप्रलय के काल में भी विद्यमान रहती हैं। उनका वर्ण महाप्रलय के बादलों जैसा है। जब ब्रह्मांड की आयु समाप्त हो जाती है, काल भी समाप्त हो जाता है तो भी माता धूमावती समाप्त नहीं होती। महाकाल शिव भी अंतर्ध्यान हो जाते हैं, माँ धूमावती अकेली खड़ी रहती हैं और काल तथा अंतरिक्ष से परे काल की शक्ति को जताती हैं। उस समय न तो धरती, न ही सूरज, चाँद , सितारे रहते हैं। रहता है सिर्फ़ धुआँ और राख- वही चरम ज्ञान है, निराकार- न अच्छा न बुरा; न शुद्ध, न अशुद्ध; न शुभ, न अशुभ- धुएँ के रूप में अकेली माँ धूमावती।

एक साथ तीनों कालों या काल के परे भी देख लेने की जो विधा है, समय को अपने अनुरूप जानने और उसको बदलने का सामर्थ्य माता धूमावती के साधकों को प्राप्त होता है। परंतु ये सरलता से पहचाने नहीं जाते। सामान्य जनों-जनसमूहों से दूरी बनाकर पहाड़ों-जंगलों में रखते हैं। उन्हें अशुभ माना जाता है क्योंकि बहुधा सच वह नही होता, जैसा कि हम चाहते हैं।

कर्मकांड विधि में शास्त्रोक्त प्रमाणों के साथ प्रामाणिक चर्चा की जाती है एवं कई महत्वपूर्ण विषयों की चर्चा पूर्व भी की जा चुकी है। तथापि सनातनद्रोही उचित तथ्य को जनसामान्य तक पहुंचने में अवरोध उत्पन्न करते हैं। एक बड़ा वैश्विक समूह है जो सनातन विरोध की बातों को प्रचारित करता है। गूगल भी उसी समूह का सहयोग करते पाया जा रहा है अतः जनसामान्य तक उचित बातों को जनसामान्य ही पहुंचा सकता है इसके लिये आपको भी अधिकतम लोगों से साझा करने की आवश्यकता है।

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