जब माता सती ने अपने पिता के यहां हवन कुंड में अपनी इच्छा स्वयं का दहन कर लिया तब उनके शरीर से जो धुआं निकला था उसी धुंए से माँ धूमावती प्रकट हुई थी। अर्थात मां धूमावती धूम के स्वरूप में माता सती का भौतिक रूप है। मां धूमावती को रोग शोक और दुख को नियंत्रित करने वाली महाविद्या माना जाता है। पद्म पुराण में बताया गया है की दुर्भाग्य की देवी धूमावती मां लक्ष्मी की बड़ी बहन है, परंतु इनका स्वरूप मां लक्ष्मी से पूर्ण विपरीत है जो ज्येष्ठा हैं।
माता धूमावती की पूजा-अराधना में अष्टोत्तरशतनाम स्तोत्र का विशेष महत्व है। यहां धूमावती अष्टोत्तर शतनाम स्तोत्र (dhumavati ashatottar shatnam stotra) संस्कृत में दिया गया है।
यहां पढ़ें धूमावती माता का अष्टोत्तर शतनाम स्तोत्र संस्कृत में – dhumavati ashatottar shatnam stotra
माता धूमावती के प्राकट्य की एक अन्य कथा के अनुसार एक बार माता सती भगवान शिव के साथ हिमालय में विचरण कर रही थी। तभी उन्हें तीव्र भूख लगी। उन्होंने शिव से कहा – ‘मुझे तीव्र क्षुधा लगी है’ मेरे लिए भोजन का प्रबंध कीजिये’ तो भगवान शिव ने कहा – ‘तत्काल कोई प्रबंध नहीं हो सकता’ तब सती ने कहा – ‘ठीक है, मैं तुम्हारा भक्षण ही करती हूं और वे शिव को ही निगल गईं।
भगवान शिव ने उनसे अनुरोध किया कि ‘मुझे बाहर निकालो’, तो उन्होंने उगल कर उन्हें बाहर निकाला निकलने के बाद शिव ने उन्हें शाप दिया कि “आज और अभी से तुम विधवा रूप में रहोगी” और वही माता का धूमावती स्वरूप में जाना जाता है। इनके विभिन्न स्तोत्रों में भी विधवा, ज्येष्ठा आदि नाम आता है, यहां अष्टोत्तर शतनाम में भी विधवा नाम का उल्लेख है।
ईश्वर उवाच
धूमावती धूम्रवर्णा धूम्रपानपरायणा ।
धूम्राक्षमथिनी धन्या धन्यस्थाननिवासिनी ॥१॥
अघोराचारसन्तुष्टा अघोराचारमण्डिता ।
अघोरमन्त्रसम्प्रीता अघोरमन्त्रपूजिता ॥२॥
अट्टाट्टहासनिरता मलिनाम्बरधारिणी ।
वृद्धा विरूपा विधवा विद्या च विरलद्विजा ॥३॥
प्रवृद्धघोणा कुमुखी कुटिला कुटिलेक्षणा ।
कराली च करालास्या कङ्काली शूर्पधारिणी ॥४॥
काकध्वजरथारूढा केवला कठिना कुहूः ।
क्षुत्पिपासार्दिता नित्या ललज्जिह्वा दिगम्बरी ॥५॥
दीर्घोदरी दीर्घरवा दीर्घाङ्गी दीर्घमस्तका ।
विमुक्तकुन्तला कीर्त्या कैलासस्थानवासिनी ॥६॥
क्रूरा कालस्वरूपा च कालचक्रप्रवर्तिनी ।
विवर्णा चञ्चला दुष्टा दुष्टविध्वंसकारिणी ॥७॥
चण्डी चण्डस्वरूपा च चामुण्डा चण्डनिस्वना ।
चण्डवेगा चण्डगतिश्चण्डमुण्डविनाशिनी ॥८॥
चाण्डालिनी चित्ररेखा चित्राङ्गी चित्ररूपिणी ।
कृष्णा कपर्दिनी कुल्ला कृष्णारूपा क्रियावती ॥९॥
कुम्भस्तनी महोन्मत्ता मदिरापानविह्वला ।
चतुर्भुजा ललज्जिह्वा शत्रुसंहारकारिणी ॥१०॥
शवारूढा शवगता श्मशानस्थानवासिनी ।
दुराराध्या दुराचारा दुर्जनप्रीतिदायिनी ॥११॥
निर्मांसा च निराकारा धूतहस्ता वरान्विता ।
कलहा च कलिप्रीता कलिकल्मषनाशिनी ॥१२॥
महाकालस्वरूपा च महाकालप्रपूजिता ।
महादेवप्रिया मेधा महासङ्कटनाशिनी ॥१३॥
भक्तप्रिया भक्तगतिर्भक्तशत्रुविनाशिनी ।
भैरवी भुवना भीमा भारती भुवनात्मिका ॥१४॥
भेरुण्डा भीमनयना त्रिनेत्रा बहुरूपिणी ।
त्रिलोकेशी त्रिकालज्ञा त्रिस्वरूपा त्रयीतनुः ॥१५॥
त्रिमूर्तिश्च तथा तन्वी त्रिशक्तिश्च त्रिशूलिनी ।
इति धूमामहत्स्तोत्रं नाम्नामष्टोत्तरात्मकम् ॥१६॥
मया ते कथितं देवि शत्रुसङ्घविनाशनम् ।
कारागारे रिपुग्रस्ते महोत्पाते महाभये ॥१७॥
इदं स्तोत्रं पठेन्मर्त्यो मुच्यते सर्वसङ्कटैः ।
गुह्याद्गुह्यतरं गुह्यं गोपनीयं प्रयत्नतः ॥१८॥
चतुष्पदार्थदं नॄणां सर्वसम्पत्प्रदायकम् ॥१९॥
॥ इति श्रीधूमावत्यष्टोत्तरशतनामस्तोत्रं सम्पूर्णम् ॥
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