जब कोई नया घर बनाता है तो उसमें चिरकाल तक सुख-शांति पूर्वक निवास करने की भी इच्छा रखता है। किसी भी घर में सुख-शांति के साथ निवास करने के लिये वास्तु शांति तो अपेक्षित होती ही है इसके साथ ही गृहप्रवेश के संबंध में भी कई महत्वपूर्ण बातें होती हैं जो सामान्य जन नहीं जान पाते। यहां गृहप्रवेश से संबंधित 21 महत्वपूर्ण बातें बताई गयी है जो गृहप्रवेश करने से पहले जानना आवश्यक होता है।
गृह प्रवेश का क्या अर्थ है
गृहप्रवेश का अर्थ होता है किसी घर में निवास करने के लिये शुभमुहूर्त में सपरिवार विधिपूर्वक प्रवेश करना। गृहप्रवेश से पूर्व शुभ मुहूर्त बनाकर वास्तु शांति की जाती है। फिर सपरिवार नये वस्त्राभूषण और शृंगार आदि करके घर के मुख्य द्वार पर गाय का पूजन करके ब्राह्मण को आगे रखते हुये प्रवेश किया जाता है।
गृहप्रवेश के प्रकार
गृह प्रवेश के दो प्रकार होते हैं –
- पहला नये घर में प्रवेश करना जिसे गृहप्रवेश कहा जाता है।
- दूसरा पुराने घर में बहुत दिनों बाद या किसी अन्य से पुराना घर खरीदकर उसमें प्रवेश करना जिसे जीर्ण गृह प्रवेश कहा जाता है।
गृह प्रवेश के नियम – गृह प्रवेश पूजा विधि की 21 महत्वपूर्ण बातें
गृह प्रवेश करने से पहले गृह प्रवेश के कुछ विशेष नियम हैं जिनको जानना आवश्यक होता है। यहां गृहप्रवेश के 21 विशेष महत्वपूर्ण नियमों की जानकारी दी गयी है :
- विधिवत गृहप्रवेश करने के लिये पूजा-हवन हेतु घर के निकट एक पूजा मंडप बनाना चाहिये।
- मंडप में चार द्वार भी बनाये पूजा मंडप बनावटी न हो, वास्तविक हो यह ध्यान रखना चाहिये।
- मंडप के चारों ओर कुछ जगह तो खाली रहनी ही चाहिये, पश्चिम भाग पूजा करने के लिये अधिक जगह खाली रखनी चाहिये।
- मूंज की डोरी में आम का पत्ता गूंथकर घर पर तो लगाना ही चाहिए, मंडप में भी लगाया जाना चाहिये। मंडप में पहले व घर में पूजा के बाद गृहप्रवेश पूर्व सविधि ३ बार वेष्टित करें।
- घर एवं मंडप को वास्तविक फूल, पत्तों, दीपों से सजाया जाना चाहिये। मंडप में एक चांदनी भी लगाया जाना चाहिये।
- घर के लिये सभी उपयोगी सामान (यथासंभव नया सामान) गृह प्रवेश से पहले घर में व्यवस्थित कर ले; जैसे – शय्या, चूल्हा एवं रसोई संबंधी, संदूक, फ्रीज, झाड़ू व सफाई संबंधी अन्य सामान इत्यादि।
- मंडप के मध्य में हवन कुंड या हवन वेदी बनाना चाहिये।
- वास्तु मंडल व अन्य सभी मंडल पूजा-हवन मंडप में ही करना चाहिये। मध्य में हवन वेदी और अग्निकोण में वास्तुमंडल । (नवग्रह, सर्वतोभद्र आदि मंडल भी बनाया जा सकता है)
- पंचगव्य निर्माण करके प्राशन और मंडप एवं घर का प्रोक्षण भी करना चाहिये।
- गृहप्रवेश से पूर्व भी घर में ब्राह्मण भोजन कराया जाना चाहिये।
- गृहप्रवेश से पूर्व घर को अखंड सूत्र (वस्त्रार्थ पीला धागा) से तीन बार वेष्टित करें। धागा मजबूत होना चाहिये अन्यथा वेष्टित करते समय भी टूट सकता है। रक्षासूत्र का प्रयोग न करे क्योंकि टूटने का कम परने भय हो सकता है।
- वास्तु स्थापन हेतु वास्तु चक्रानुसार आकाश पद (ईशान से आठवां, अग्निकोण से दूसरा भाग) गड्ढा करने के लिये जमीन ही रहना चाहिये, जिसपर बाद में पलस्तर किया जा सकता है।
- आकाश पद में वास्तु, कलश आदि के साथ सप्तधान्य का अलग-अलग मृद्भांड (छोटी कोठी), दही, धान का लावा, दूर्वा, शैवाल आदि भी दे ।
- आकाश पद में केवल एक वास्तु कलश (नारियल सहित) दे । मण्डप के पूजनोपयुक्त अन्य सभी वस्तुएं ब्राह्मण को ही दे । पूजन में उपयोग किये गये सभी वस्तुओं पर केवल ब्राह्मण का अधिकार होता है। अन्य किसी को भी देने पर ब्राह्मण धनहरण दोष प्रभावी ।
- गृह प्रवेश करने से पहले घर के कोषागार में श्री स्थापन करना चाहिये।
- गृहप्रवेश करने से पहले घर की तीन बार परिक्रमा करनी चाहिये।
- जिस कलश को लेकर घर में प्रवेश करे उसे अग्निकोण या ईशानकोण या मध्य भाग में स्थापित करना चाहिये।
- साथ में लाये हुये भगवान की प्रतिमा या चित्र को पूजा घर में रखना चाहिये।
- गृहप्रवेश करने के बाद घर में पुण्याहवाचन अथवा संक्षिप्त पुण्याहवाचन करना चाहिये।
- नये घर में उपकरणों – शय्या, चूल्हा, मिक्सी, खल, नल आदि की भी पूजा करनी चाहिये।
- घर के द्वार पर द्वार देवताओं की भी पूजा करनी चाहिये।
आगे पढ़ें – गृहप्रवेश पूजा पद्धति
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