भूमि पूजन विधि – गृहारंभ विधि पूजन मंत्र सहित

भूमि पूजन विधि – गृहारंभ विधि पूजन मंत्र सहित

भूमि पूजन –

  • खात में पल्लवादि से जल छिड़के – ॐ आपोहिष्ठामयोभुवस्तान ऽऊर्जेदधातन । महेरणाय चक्षसे ॥ यो वः शिवतमो रसस्तस्य भाजयतेहनः । उशतीरिव मातरः ॥ तस्मा ऽअरंगमामवो यस्यऽक्षयाय जिन्वथा । आपोजनयथा च नः ॥
  • भूमि आवाहन – ॐ आगच्छ सर्वकल्याणि वसुधे लोकधारिणि । उद्धृतासि वराहेण सशैल वनकानने ॥ कूर्मपृष्ठोपरिस्थितां शुक्लवर्णां चतुर्भुजाम् । शंखपद्मधरां चक्र शूलयुक्तां धरां भजे ॥ ॐ स्योना पृथिवी नो भवानृक्षरा निवेशनी । यच्छा नः शर्म सप्रथाः ॥
  • भूमि पूजन मंत्र – ॐ भूर्भुवः स्वः भूम्यै नमः॥

वहीं पर अनंत (सर्प), कूर्म और वराह पूजन करें। सर्प, कूर्म, पंचरत्न किसी पत्ते या पात्र में रखे ।

अनन्त पूजन :

  • आवाहन – ॐ स्योना पृथिवी नो भवानृक्षरा निवेशनी । यच्छा नः शर्म सप्रथाः ॥ ॐ भूर्भुवः स्वः अनन्त इहागच्छ इहतिष्ठ॥
  • अनन्त पूजन मंत्र – ॐ भूर्भुवः स्वः अनन्ताय नमः ॥
  • प्रार्थना – ॐ हिमकुन्दप्रतिकाश नागानंत महाफणिन्। स्थानं देहि गृहं कर्तुं अनन्ताय नमोऽस्तुते ॥

कूर्म पूजन –

  • आवाहन – ॐ यस्य कुर्मो गृहे हविस्तमग्ने वधैया त्वम् । तस्मै देवा अधिब्रुवन् नयञ्च ब्रह्मणस्पतिः ॥ ॐ भूर्भुवः स्वः कूर्म इहागच्छ इहतिष्ठ॥
  • कूर्म पूजन मंत्र – ॐ भूर्भुवः स्वः कूर्माय नमः ॥
  • प्रार्थना – ॐ कूर्मदेवं नमस्तुभ्यं सर्वकाम फलप्रद। गृहेऽस्मिन् स्थिरोभूत्वा मम स्वस्तिकरो भव ॥ ॐ सर्वलक्षण संपन्न सर्वेश कमलाधिप। स्थानं देहि गृहं कर्तुं विष्णुरूप नमोऽस्तुते ॥

वराह पूजन :

  • आवाहन – ॐ खड्गो वैष्वदैवः श्वा कृष्णः कर्णो गर्दभस्तरक्षुस्ते । रक्षसामिन्द्राय सूकरः सिद्धᳪ हो मारुतः कृकलासः पिप्पकाशकुनिस्ते शख्याये विष्वेषां देवानां पृषतः ॥ ॐ भूर्भुवः स्वः वराह इहागच्छ इहतिष्ठ॥
  • पूजन मंत्र – ॐ भूर्भुवः स्वः वराहाय नमः॥
  • प्रार्थना – ॐ त्रिविक्रमायामित विक्रमाय महावराहाय सुरोत्तमाय । श्रीशार्ङ्ग चक्रासिगदाधराय नमोऽस्तु देववर प्रसीद ॥

तत्पश्चात् भूमि के अर्घ्यपात्र में जल, दूध, तिल, अतः, जौ, पीली सरसों, पुष्प, दूर्वा आदि लेकर जानु के बल बैठकर (घुटने टेककर) अगले मंत्र से अर्घ्य दे :-

  • अर्घ्य – ॐ हिरण्यगर्भे वसुधे शेषस्योपरि शायिनि । उद्धृतासि वराहेण सशैलवनकानना ॥ गृहं कारयाभ्यद्य त्वदूर्ध्वं शुभलक्षणम् । गृहाणार्घ्यं मया दत्तं प्रसन्ना शुभदा भव ॥ इदमर्घ्यं ॐ भूर्भुवः स्वः भूम्यै नमः॥
  • दधिमाषादिबलि – तत्पश्चात् भूमि के निमित्त सघृत, सदीप दधिमाषादिबलि देकर प्रार्थना करें – ॐ समुद्रमेखले देवि पर्वतस्तन मण्डले । विष्णुपत्नि नमस्तुभ्यं शस्त्रपातं क्षमस्व मे । इष्टं मेत्वं प्रयच्छेष्टंत्वामहं शरणं गतः । पुत्रदारधनायुष्यधर्मवृद्धिकरी भव ।।

सर्पकूर्मादि को भी कलश में रख दे । खात के मध्यभाग और अग्नि आदि चारों कोणों में थोड़ा-थोड़ा तेल गिराकर अगले मंत्र से पीली सरसों छिड़कें :

ॐ भूतप्रेतपिशाचाद्या अपक्रामन्तु राक्षसाः । स्थानादस्माद्व्रजन्त्वन्यत्स्वीकरोमि भुवं त्विमाम् ॥

फिर दही-उड़द आदि की बलि देकर पहले मध्य भाग में ७ पान रखकर उसके ऊपर लौहशंकु रखे, ८ बार हथौड़े से प्रहार करके कीलित कर दे ।

ॐ शिवन्तु भूतले नागाः लोकपालाश्च सर्वतः । अस्मिन् स्थानेऽवतिष्ठन्तु आयुर्बलकराः सदा ॥

सभी कीलों पर मधु, घी, द्रव्य आदि दे । पूर्वपूजित कलश को मध्य कील के ऊपर रखे । पूर्वादि दिशाओं में भी चार कलश स्थापित करके पूजन करे।

पुनः पांचों कलश की पूजा करे : १. मध्य कलश में पद्म – ॐ पद्माय नमः। २. पूर्व कलश में महापद्म – ॐ महापद्माय नमः । ३. दक्षिण कलश में शंख – ॐ शंखाय नमः। ४. पश्चिम कलश में मकर, ॐ मकराय नमः। ५. उत्तर कलश में समुद्र, ॐ समुद्राय नमः।

तत्पश्चात् जिस पात्र में सर्पादि प्रतिमा है उसमें दही, लावा, शैवाल, दूर्वा, धान्य, पुष्पादि देकर कलश तक मिट्टी भरकर पूर्वपूजित शिला स्थापित करें –

  • मध्य में – ॐ पूर्णे त्वं सर्वदा भद्रे सर्वसन्दोहलक्षणे । सर्वं सम्पूर्णमेवात्र कुरुष्वाङ्गिरसः सुते ।
  • पूर्व में – ॐ नन्दे त्वं नन्दिनी पुंसां त्वामत्र स्थापयाम्यहम् । अस्मिन् रक्षा त्वया कार्या प्रासादे यत्नतो मम ॥
  • दक्षिण में – ॐ भद्रे त्वं सर्वदा भद्रं लोकानां कुरु काश्यपि । आयुर्दा कामदा देवि सुखदा च सदा भव ॥
  • पश्चिम में – ॐ जये त्वं सर्वदा देवि तिष्ठत्वं स्थापिता मया । नित्यं जयाय भूत्यै च स्वामिनो भव भार्गवि ।।
  • उत्तर में – ॐ रिक्ते त्वरिक्ते दोषघ्ने सिद्धिवृद्धिप्रदे शुभे । सर्वदा सर्वदोषघ्ने तिष्ठास्मिन्मम मन्दिरे ॥

पुनः नाम मंत्रों से पूजा कर ले । चारों ओर दशदिक्पाल की पूजा करके दधिमाषादि बलि अर्पित करके विश्वकर्मा पूजा करे :

विश्वकर्मा पूजन विधि :

  • आवाहन – ॐ अयं दक्षिणा विश्श्वकर्मा तस्य मनो व्वैश्श्वकर्मणं ग्रीष्मो मानसस्त्रिष्टुब्ग्रैष्मी त्रिष्टुभः स्वार ᳪ स्वारादन्तर्य्यामोऽन्तर्य्यामापञ्चदशः पञ्चदशाद् बृहद्भरद्वाज ऽऋषिः प्रजापतिगृहीतया त्वया मनो गृह्णामि प्रजाब्भ्यः ॥ ॐ भूर्भुवः स्वः विश्वकर्मन् इहागच्छ इहतिष्ठ ॥
  • विश्वकर्मा पूजन मंत्र – ॐ भूर्भुवः स्वः विश्वकर्मणे नमः ॥
  • प्रार्थना – ॐ अज्ञानात् ज्ञानतो वापि दोषास्युश्च यदुद्भवाः । नाशयत्व हितान् सर्वान् विश्वकर्मन् नमोऽस्तुते ॥ ॐ त्वष्ट्रा त्वम् निर्मितः पूर्व लोकनां हितकाम्यया । पूजितोऽसि खनित्रि त्वं सिद्धिदो भव नो ध्रुवम् ॥

तत्पश्चात् आरती करके क्षमा प्रार्थना करे । शिल्पी को वस्त्रादि प्रदान करे । शिल्पी अन्य ईंट आदि जोड़े ।

प्रार्थना : ॐ यथा मेरुगिरेःशृङ्गे देवानामालयः सदा। स्थातथा ब्रह्मादिदेवानां गेहे मे स्थिरता भवेत् ॥

विसर्जन : ॐ यान्तु देवगणाः सर्वे पूजामादाय मामकीम् । इष्टकाम प्रसिद्ध्यर्थं पुनरागमनाय च ॥ ॐ पूजितदेवताः पूजितास्थ क्षमध्वं स्व-स्व स्थानं गच्छत ॥

दक्षिणा : ॐ अद्य कृतैतत् गृहारंभ कर्मणः प्रतिष्ठार्थम् एतावद्द्रव्यमूल्यक हिरण्यमग्निदैवतं यथानामगोत्राय ब्राह्मणाय दक्षिणामहं ददे ॥

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