नामकरण संस्कार कब करना चाहिए
शास्त्रों में जन्माशौच के उपरांत नामकरण संस्कार करने की विधि कही गयी है। पूर्वकाल में सभी वर्णों के लिये अलग-अलग अशौच काल निर्धारित था परन्तु वर्तमान युग में सबके लिये १० दिन निर्धारित किया गया है।
- नामकरण संस्कार ११वें (ग्यारहवें) दिन करना चाहिये।
- अथवा १०१वें दिन।
- अथवा अगले वर्ष जन्मदिन पर करना चाहिये।
बच्चे का नामकरण के लिए नाम
नामकरण के लिये नाम की भी एक विशेष विधि है, जैसे कि बालक के लिये २ या ४ सम वर्ण का नाम हो, बालिका के लिये विषम वर्ण का नाम हो। पांच नाम रखने की विधि कही गयी है। कई प्रकार के नामों का निषेध भी किया गया है।
नामकरण कैसे करें ?
सामर्थ्यानुसार नामकरण संस्कार को उत्सव की तरह ही मनाना चाहिये, परन्तु उत्सव का मतलब पार्टी नहीं होता है क्योंकि अब पार्टी को अर्थ जो भी शब्द सुनकर ही एक ऐसे गतिविधि का भाव आता है जो सही नहीं माना जा सकता। और यदि पार्टीबाजी करके जिस किसी दिन, जैसे मन किया बच्चे का नाम रखने से वह नाम अपना प्रभाव कैसे होगा ?
- नामकरण संस्कार हेतु ग्यारहवें दिन ३ ब्राह्मण को निमंत्रित करे।
- शास्त्रीय विधि के अनुसार पूजा-हवन करे।
- 3 ब्राह्मणों को भोजन कराये।
- फिर स्वर्ण शलाका अथवा अन्य विकल्प से वस्त्र या पीपल के पांच पत्ते पर पांच अलग-अलग नाम लिखकर उसकी प्राण-प्रतिष्ठा करके पूजा करे।
- तत्पश्चात बच्चे का नामकरण, विसर्जन, दक्षिणा, दान आदि करे।
- सपरिवार, निमंत्रित बंधू-बांधव सहित भोजन करे।
- बहुधा नामकरण संस्कार के दिन ही निष्क्रमण संस्कार भी सम्पादित करने का व्यवहार दिखता है।
आगे नामकरण करने के लिये संस्कार की पूरी शास्त्रीय विधि मंत्र आदि वर्णित है।
नामकरण संस्कार विधि
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