नवग्रहों के एकाक्षरी बीज मंत्र, रत्न, उपरत्न और जड़ी
नीचे नवग्रहों के एकाक्षरी बीजमंत्र, रत्न, उपरत्न, जड़ी सारणी में दिया गया है। मोबाइल में सीधा देखने पर यदि समस्या हो तो तिरछा करके देखने पर सही हो जायेगा।
ग्रह | एकाक्षरी बीज मंत्र | रत्न | उपरत्न | जड़ी |
सूर्य | ॐ घृणिः सूर्याय नमः। | माणिक्य | लालड़ी | बिल्वमूल |
चंद्र | ॐ सों सोमाय नमः। | मोती | शंखमूंगा | खिरनी मूल |
मंगल | ॐ अं अंगारकाय नमः। | मूंगा | गारनेट | अनंतमूल |
बुध | ॐ बुं बुधाय नमः। | पन्ना | ओनेक्स | विधारा की जड़ |
गुरु | ॐ बृं बृहस्पतये नमः। | पुखराज | पुखराज | भृंगराज अथवा केला |
शुक्र | ॐ शुं शुक्राय नमः। | हीरा | टोपाज | सिंहपुछ / सरपोंखा |
शनि | ॐ शं शनैश्चराय नमः। | नीलम | नीली | बिच्छूबूटी |
राहु | ॐ रां राहवे नमः। | गोमेद | लाजवर्त | श्वेत चंदन की जड़ |
केतु | ॐ कें केतवे नमः। | वैदूर्य | लाजवर्त | अश्वगंधामूल |
नवग्रह समिधा : नवग्रह होम के लिये नवग्रहों की समिधा इस प्रकार बताई गई है : सूर्य – अकान, चन्द्र – पलाश, मङ्गल – खैर, बुध – अपामार्ग, गुरु – पीपल, शुक्र – गुल्लर, शनि – शमी, राहु – दूर्वा, केतु – कुशा।
ग्रह शांति हेतु दान सामग्री
आगे ग्रहों के शांति हेतु दान सामग्री दी गयी है। ग्रहों की सामग्री दान करने से भी ग्रहों के अशुभ फल का निवारण होता है और शुभ फल की वृद्धि होती है।
- सूर्य : गोधूम, गुड़, ताम्र, सुवर्ण, केशर, सवत्सा गौ।
- चन्द्र : श्वेत तण्डुल, श्वेत वस्त्र, दधि, शंख, चीनी, चांदी, कर्पूर, घृत, वंशपात्र।
- मङ्गल : भूमि, मसूर दाल, गुड़, ताम्र, रक्त वस्त्र, सुवर्ण, केसर, कस्तूरी।
- बुध : कांस्य,हरित वस्त्र, शंख, कर्पूर, फल, गजदन्त, घृत, स्वर्ण, केसर, षडरस भोजन।
- गुरु : पीत धान्य, पीत वस्त्र, स्वर्ण, घृत, पीत फल, अश्व, मधु, पुस्तक, छत्र, दधि, भूमि, हरिद्रा।
- शुक्र : श्वेत तण्डुल, श्वेत चित्र वस्त्र, घृत, स्वर्ण, चांदी, स्फटिक, दधि, शंख, गोधूम, शक्कर, श्वेताश्व, भूमि, श्वेत गौ।
- शनि : काला उड़द, तेल, कृष्ण तिल, कृष्ण वस्त्र, कम्बल, उपानह, कस्तूरी, स्वर्ण, लौह, कुल्थी, महिषी, छत्र, कृष्णगौ, कज्जल।
- राहु : काला उड़द, अश्व, तिल, नील वस्त्र, तिल तेल, सप्तधान्य, लौह, स्वर्ण, कम्बल, शस्त्र, छाग।
- केतु : काला उड़द, कम्बल, कस्तूरी, तिल तेल, कृष्ण वस्त्र, स्वर्ण, लौह, छाग, खड्ग, कस्तूरी, उपानह, कृष्ण तिल।
नवग्रह शांति विशेष
नवग्रह पूजा में कुछ विशेष बातों का ध्यान रखना आवश्यक होता है। नवग्रह पूजा में ध्यान रखने वाली महत्वपूर्ण बातें इस प्रकार हैं :
स्कान्दपुराण में नवग्रह शांत्यर्थ कुछ विशेष ज्ञान को भी आवश्यक कहा गया है – जन्मभूर्गोत्रमग्निश्च वर्णं स्थानं मुखानि च । योऽज्ञात्वा कुरुते शान्तिं ग्रहास्तेनाऽवमानिताः ॥ जन्मभूमि, गोत्र, अग्नि, वर्ण, स्थान और मुख का ज्ञान तदनुसार पूजन (मंत्र प्रयोग) नहीं करने पर नवग्रह की अवमानना कही गई है।
ग्रहों की जन्मभूमि : ग्रहों की भूमि इस प्रकार कही गयी है; सूर्य – कलिङ्ग, चन्द्र – यमुना (तट), मङ्गल – अवन्ति, बुध – मगध, गुरु – सिन्धु, शुक्र – भोजकट, शनि – सौराष्ट्र, राहु – राठिन पुर, केतु – अन्तर्वेदी। सूर्य उत्पन्नोऽर्क कलिङ्गेषु यमुनायां च चन्द्रमा। अंगारकस्त्ववन्त्यां च मगधायां हिमाशुजः ॥ सैन्धवेषुगुरुं जातः शुक्रोभोजकटे तथा । शनैश्चरस्तुसौराष्ट्रे राहुवैराठिने पुरे । अन्तर्वेद्यांतथाकेतुः इत्येताग्रहभूमयः ॥
ग्रहों के गोत्र : ग्रहों के गोत्र क्रमशः सूर्यादि क्रम से इस प्रकार कहे गये हैं – काश्यप, अत्रि, भारद्वाज, आत्रेय, अङ्गिरा, भार्गव, काश्यप, पैठीनस और जैमिनी। आदित्य काश्यपे गोत्रे अत्रिजश्चंद्रमाभवेत् । भारद्वाजो भवेद्भौमस्तथाऽत्रेयश्चचन्द्रजः ॥ शक्रपूज्योऽङ्गिरोगोत्रः शुक्रो वै भार्गवस्तथा। शनि काश्यप गोत्रोऽथ राहु पैठीनसिस्तथा ॥ केतवो जैमिनेयाश्च ग्रहगोत्राणि कीर्तयेत्॥
ग्रहों के मुख : ग्रहों के मुख की दिशायें भी बताई गयी हैं और मुख के अनुसार ही ग्रहों के दक्षिण-वाम भाग आदि का निर्धारण किया जाता है। सूर्य और शुक्र पूर्वाभिमुख, बुध और गुरु उत्तराभिमुख, चंद्र और शनि पश्चिमाभिमुख एवं शेष मंगल, और राहु, केतु दक्षिणाभिमुख। उपरोक्त प्रकार से ग्रहों के मुख का विचार करके ही सूर्यादि सभी ग्रहों के अभिमुख अधिदेवता व प्रत्यधिदेवताओं का स्थापन करना चाहिये। शुक्रार्कौ प्राङ्मुखौ ज्ञेयौ गुरुसौम्यावुदङ्मुखौ । प्रत्यङ्मुखः शनिं सोमं शेषादक्षिणतोमुखा । आदित्याभिमुखाः सर्वे साधिप्रत्यधि देवता । स्थापनीया मुनिश्रेष्ठा नान्तरेण पराङ्मुखा ॥
ग्रहों की अग्नि : सूर्यादि ग्रहों से सम्बंधित अग्नियों के नाम क्रमशः इस प्रकार बताये गए हैं : कपिल, पिङ्गल, धूम्रकेतु, जठर, शिखी, हाय्क, महातेज और हुताशन। आदित्ये कपिलोनाम पिंगलः सौमउच्यते । धूम्रकेतुस्तथाभौमे जाठरोऽग्निर्बुधैस्मृतः ॥ गुरौचैव शिखीनाम शुक्रेभवति हाय्क । शनैश्चरे महातेजा राहुकेत्वोर्हुताशन ॥
वर्ण और देवता : वर्ण और देवता के संदर्भ में बृहज्जातकम् में इस प्रकार कथन प्राप्त होता है – वर्णास्ताम्र सितारिक्त हरितव्या पीतचित्रासिता वह्न्यम्ब्बग्निजकेशवेन्द्रशचिकाः सूर्यादिनाथाः क्रमात् ॥ अर्थात् सूर्यादि ग्रहों के वर्ण क्रमशः इस प्रकार हैं – ताम्र, श्वेत, रक्त, हरित, पीत, चित्र और कृष्ण । किन्तु कर्मकांड में शुक्र का वर्ण भी श्वेत ही ग्रहण किया जाता है। राहु और केतु का कृष्ण।
नवग्रहों के नैवेद्य : गुडौदनं रवैर्दद्यात्सोमाय घृतपायसम् । अंगारकाय संयाव बुधाय क्षीर यष्टिकम् ॥ दध्योदनं च जीवाय शुक्राय च गुडौदनम् । शनैश्चराय कृशरं मज्जामासं च राहवे । चित्रौदनं च केतुभ्यः सर्व भक्ष्यैरथार्चयेत् ॥
नवग्रह शांति मंत्र
ब्रह्मा मुरारीस्त्रिपुरान्तकारी भानुः शशि भूमिसुतो बुधश्च।
गुरुश्च शुक्रः शनि राहु केतव: सर्वे ग्रहाः शांतिकरा भवन्तु ॥
नवग्रह प्रार्थना मंत्र
सूर्यः शौर्यमथेन्दुरुच्च पदवीं, सन्मंगलं मंगल:
सद्बुद्धिञ्चबुधो गुरूश्चगुरुतां, शुक्रःसुखं शं शनिः।
राहुर्बाहुबलं करोतु विपुलं, केतुः कुलस्योन्नतिं
नित्यं प्रीतिकरा भवन्तु भवतां, सर्वे प्रसन्ना ग्रहा: ॥
एकश्लोकीनवग्रहस्तोत्रम्
आधारे प्रथमे सहस्रकिरणं, ताराधवं स्वाश्रये
माहेयं मणिपूरके हृदि बुधं, कण्ठे च वाचस्पतिम्।
भ्रूमध्ये भृगुनन्दनं दिनमणेः, पुत्रं त्रिकूटस्थले
नादिमर्मसु राहु-केतु-गुलिकान्नित्यं नमाम्यायुशे ॥
इस प्रकार यहां नवग्रहों की शांति हेतु विभिन्न उपाय बताये गये हैं। ग्रह शांति हेतु सबसे उत्तम उपाय ग्रह के मंत्रों का जप और विधि पूर्वक हवन करना है। इसके साथ ही अन्य उपाय यथा रत्न, यंत्र, जड़ी धारण करना, ग्रह सम्बन्धी वस्तुओं का दान करना, स्तोत्र पाठ करना, नवग्रह कवच पाठ करना आदि उपाय भी किये जा सकते हैं।
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कर्मकांड विधि में शास्त्रोक्त प्रमाणों के साथ प्रामाणिक चर्चा की जाती है एवं कई महत्वपूर्ण विषयों की चर्चा पूर्व भी की जा चुकी है। तथापि सनातनद्रोही उचित तथ्य को जनसामान्य तक पहुंचने में अवरोध उत्पन्न करते हैं। एक बड़ा वैश्विक समूह है जो सनातन विरोध की बातों को प्रचारित करता है। गूगल भी उसी समूह का सहयोग करते पाया जा रहा है अतः जनसामान्य तक उचित बातों को जनसामान्य ही पहुंचा सकता है इसके लिये आपको भी अधिकतम लोगों से साझा करने की आवश्यकता है।