शिव ताण्डव स्तोत्र रावण रचित एक प्रसिद्ध स्तोत्र है। नित्य शिव ताण्डव स्तोत्र का पाठ करने से भगवान शिव की कृपा प्राप्त होती है। इस आलेख में अर्थ सहित शिव ताण्डव स्तोत्र दिया गया है। शिव ताण्डव स्तोत्र के दो प्रकार पाये जाते हैं –
- पहले शिव ताण्डव स्तोत्र में 17 श्लोक मिलते हैं तो वहीं
- दूसरे शिवताण्डव स्तोत्र में 15 श्लोक ही मिलते हैं। दूसरे प्रकार में श्लोक 14 और 15 नहीं मिलता है।
शिव तांडव स्तोत्र की सबसे बड़ी विशेषता : शिव तांडव स्तोत्र की सबसे बड़ी विशेषता यह है कि जब भगवान शिव रावण पर कुपित थे और रावण पीड़ित था तब इसी स्तोत्र से भगवान शिव प्रसन्न हुये थे और रावण के कष्ट का निवारण हुआ था।
इसी तरह सामान्य मनुष्य भी व्यावहारिक जीवन में जाने-अनजाने कई प्रकार के ऐसे कर्म करता है जिससे दैवीय दण्ड का पात्र बन जाता है। उस स्थिति में शिव तांडव स्तोत्र का पाठ करना विशेष लाभकारी होता है।
शिव तांडव स्तोत्र हिंदी अर्थ सहित
जटाटवीगलज्जलप्रवाहपावितस्थले
गलेऽवलम्ब्य लम्बितां भुजङ्गतुङ्गमालिकाम् ।
डमड्डमड्डमड्डमन्निनादवड्डमर्वयं
चकार चण्डताण्डवं तनोतु नः शिवः शिवम् ॥१॥
जटाकटाहसम्भ्रमभ्रमन्निलिम्पनिर्झरी
विलोलवीचिवल्लरीविराजमानमूर्धनि ।
धगद्धगद्धगज्ज्वलल्ललाटपट्टपावके
किशोरचन्द्रशेखरे रतिः प्रतिक्षणं मम ॥२॥
धराधरेन्द्रनंदिनीविलासबन्धुबन्धुर
स्फुरद्दिगन्तसन्ततिप्रमोदमानमानसे ।
कृपाकटाक्षधोरणीनिरुद्धदुर्धरापदि
क्वचिद्दिगम्बरे मनो विनोदमेतु वस्तुनि ॥३॥
जटाभुजङ्गपिङ्गलस्फुरत्फणामणिप्रभा
कदम्बकुङ्कुमद्रवप्रलिप्तदिग्वधूमुखे ।
मदान्धसिन्धुरस्फुरत्त्वगुत्तरीयमेदुरे
मनो विनोदमद्भुतं बिभर्तु भूतभर्तरि ॥४॥
सहस्रलोचनप्रभृत्यशेषलेखशेखर
प्रसूनधूलिधोरणी विधूसराङ्घ्रिपीठभूः ।
भुजङ्गराजमालया निबद्धजाटजूटकः
श्रियै चिराय जायतां चकोरबन्धुशेखरः ॥५॥
ललाटचत्वरज्वलद्धनञ्जयस्फुलिङ्गभा
निपीतपञ्चसायकं नमन्निलिम्पनायकम् ।
सुधामयूखलेखया विराजमानशेखरं
महाकपालिसम्पदेशिरोजटालमस्तु नः ॥६॥
करालभालपट्टिकाधगद्धगद्धगज्ज्वल
द्धनञ्जयाहुतीकृतप्रचण्डपञ्चसायके ।
धराधरेन्द्रनन्दिनीकुचाग्रचित्रपत्रक
प्रकल्पनैकशिल्पिनि त्रिलोचने रतिर्मम ॥७॥
नवीनमेघमण्डली निरुद्धदुर्धरस्फुरत्
कुहूनिशीथिनीतमः प्रबन्धबद्धकन्धरः ।
निलिम्पनिर्झरीधरस्तनोतु कृत्तिसिन्धुरः
कलानिधानबन्धुरः श्रियं जगद्धुरंधरः ॥८॥
प्रफुल्लनीलपङ्कजप्रपञ्चकालिमप्रभा
वलम्बिकण्ठकन्दलीरुचिप्रबद्धकन्धरम् ।
स्मरच्छिदं पुरच्छिदं भवच्छिदं मखच्छिदं
गजच्छिदांधकच्छिदं तमन्तकच्छिदं भजे ॥९॥
अखर्व सर्वमङ्गलाकलाकदम्बमञ्जरी
रसप्रवाहमाधुरी विजृम्भणामधुव्रतम् ।
स्मरान्तकं पुरान्तकं भवान्तकं मखान्तकं
गजान्तकान्धकान्तकं तमन्तकान्तकं भजे ॥१०॥
जयत्वदभ्रविभ्रमभ्रमद्भुजङ्गमश्वस
द्विनिर्गमत्क्रमस्फुरत्करालभालहव्यवाट् ।
धिमिद्धिमिद्धिमिध्वनन्मृदङ्गतुङ्गमङ्गल
ध्वनिक्रमप्रवर्तित प्रचण्डताण्डवः शिवः ॥११॥
दृषद्विचित्रतल्पयोर्भुजङ्गमौक्तिकस्रजोर्
गरिष्ठरत्नलोष्ठयोः सुहृद्विपक्षपक्षयोः ।
तृणारविन्दचक्षुषोः प्रजामहीमहेन्द्रयोः
समप्रवर्तिक: कदा सदाशिवं भजाम्यहम ॥१२॥
कदा निलिम्पनिर्झरीनिकुञ्जकोटरे वसन्
विमुक्तदुर्मतिः सदा शिरः स्थमञ्जलिं वहन् ।
विमुक्तलोललोचनो ललामभाललग्नकः
शिवेति मंत्रमुच्चरन् कदा सुखी भवाम्यहम् ॥१३॥
निलिम्प नाथनागरी कदम्ब मौलमल्लिका
निगुम्फनिर्भक्षरन्मधूष्णिकामनोहरः ।
तनोतु नो मनोमुदं विनोदिनीमहर्निशं
परिश्रयं परं पदं तदङ्गजत्विषां चयः ॥१४॥
प्रचण्ड वाडवानल प्रभाशुभप्रचारणी
महाष्टसिद्धिकामिनी जनावहूत जल्पना ।
विमुक्त वाम लोचनो विवाहकालिकध्वनिः
शिवेति मन्त्रभूषगो जगज्जयाय जायताम् ॥१५॥
इमं हि नित्यमेवमुक्तमुत्तमोत्तमं स्तवं
पठन्स्मरन्ब्रुवन्नरो विशुद्धिमेतिसंततम् ।
हरे गुरौ सुभक्तिमाशु याति नान्यथा गतिं
विमोहनं हि देहिनां सुशङ्करस्य चिंतनम् ॥१६॥
पूजावसानसमये दशवक्त्रगीतं
यः शम्भुपूजनपरं पठति प्रदोषे ।
तस्य स्थिरां रथगजेन्द्रतुरङ्गयुक्तां
लक्ष्मीं सदैव सुमुखिं प्रददाति शम्भुः ॥१७॥
॥ इति श्रीरावण कृतम् शिव ताण्डव स्तोत्रम्सम्पूर्णम् ॥
शिव तांडव स्तोत्र अर्थ
- रावण विद्वान भी था, शक्तिशाली भी और बहुत अंहकारी भी था।
- शिव का भक्त होते हुये भी एक बार उसने कैलास पर्वत को उठा लिया था।
- भगवान शंकर ने फिर कैलाश को दबा दिया जिससे रावण का हाथ दब गया।
- उसी समय पीड़ित रावण ने भगवान शिव का स्तवन किया, क्षमा प्रार्थना किया, जो शिव तांडव स्तोत्र नाम से प्रसिद्ध हुआ।
जटाटवीगलज्जलप्रवाहपावितस्थले गलेऽवलम्ब्य लम्बितां भुजङ्गतुङ्गमालिकाम् ।
डमड्डमड्डमड्डमन्निनादवड्डमर्वयं चकार चण्डताण्डवं तनोतु नः शिवः शिवम् ॥१॥
अर्थ : जिन शिव जी की सघन, वनरूपी जटा से प्रवाहित हो गंगा जी की धाराएँ उनके कंठ को प्रक्षालित करती हैं, जिनके गले में बड़े व लम्बे सर्पों की मालाएं लटक रहीं हैं, तथा जो शिव जी डम-डम डमरू बजा कर प्रचण्ड ताण्डव करते हैं, वे शिवजी हमारा कल्याण करें।
जटाकटाहसम्भ्रमभ्रमन्निलिम्पनिर्झरी विलोलवीचिवल्लरीविराजमानमूर्धनि ।
धगद्धगद्धगज्ज्वलल्ललाटपट्टपावके किशोरचन्द्रशेखरे रतिः प्रतिक्षणं मम ॥२॥
अर्थ : जिन शिव जी की जटाओं में अतिवेग से विलास पूर्वक भ्रमण कर रही देवी गंगा की लहरें उनके शीश पर लहरा रहीं हैं, जिनके मस्तक पर अग्नि की प्रचण्ड ज्वालायें धधक-धधक करके प्रज्वलित हो रहीं हैं, उन बाल चंद्रमा से विभूषित शिवजी में मेरा अनुराग प्रतिक्षण बढ़ता रहे।
धराधरेन्द्रनंदिनीविलासबन्धुबन्धुर स्फुरद्दिगन्तसन्ततिप्रमोदमानमानसे ।
कृपाकटाक्षधोरणीनिरुद्धदुर्धरापदि क्वचिद्दिगम्बरे मनो विनोदमेतु वस्तुनि ॥३॥
अर्थ : जो पर्वतराजसुता (पार्वती जी) के विलासमय रमणीय कटाक्षों में परम आनन्दित चित्त रहते हैं, जिनके मस्तक में सम्पूर्ण सृष्टि एवं प्राणी वास करते हैं, तथा जिनकी कृपादृष्टि मात्र से भक्तों की समस्त विपत्तियां दूर हो जाती हैं, ऐसे दिगम्बर (दिशाओं को वस्त्र सामान धारण करने वाले) शिवजी की आराधना से मेरा चित्त सर्वदा आनन्दित रहे।
जटाभुजङ्गपिङ्गलस्फुरत्फणामणिप्रभा कदम्बकुङ्कुमद्रवप्रलिप्तदिग्वधूमुखे ।
मदान्धसिन्धुरस्फुरत्त्वगुत्तरीयमेदुरे मनो विनोदमद्भुतं बिभर्तु भूतभर्तरि ॥४॥
अर्थ : मैं उन शिवजी की भक्ति में आनन्दित रहूँ जो सभी प्राणियों के आधार एवं रक्षक हैं, जिनकी जटाओं में लिपटे सर्पों के फण की मणियों का प्रकाश पीले वर्ण प्रभा-समूह रूप केसर के कान्ति से दिशाओं को प्रकाशित करते हैं और जो गजचर्म से विभूषित हैं।
सहस्रलोचनप्रभृत्यशेषलेखशेखर प्रसूनधूलिधोरणी विधूसराङ्घ्रिपीठभूः ।
भुजङ्गराजमालया निबद्धजाटजूटकः श्रियै चिराय जायतां चकोरबन्धुशेखरः ॥५॥
अर्थ : जिन शिव जी के चरण इन्द्र-विष्णु आदि देवताओं के मस्तक के पुष्पों की धूल से रंजित हैं (जिन्हें देवतागण अपने सर के पुष्प अर्पण करते हैं), जिनकी जटाओं में लाल सर्प विराजमान है, वो चन्द्रशेखर हमें चिरकाल के लिए सम्पदा दें।
ललाटचत्वरज्वलद्धनञ्जयस्फुलिङ्गभा निपीतपञ्चसायकं नमन्निलिम्पनायकम् ।
सुधामयूखलेखया विराजमानशेखरं महाकपालिसम्पदेशिरोजटालमस्तु नः ॥६॥
अर्थ : जिन शिव जी ने इन्द्रादि देवताओं का गर्व दहन करते हुए, कामदेव को अपने विशाल मस्तक की अग्नि ज्वाला से भस्म कर दिया, तथा जो सभी देवों द्वारा पूज्य हैं, तथा चन्द्रमा और गंगा द्वारा सुशोभित हैं, वे मुझे सिद्धि प्रदान करें।
करालभालपट्टिकाधगद्धगद्धगज्ज्वल द्धनञ्जयाहुतीकृतप्रचण्डपञ्चसायके ।
धराधरेन्द्रनन्दिनीकुचाग्रचित्रपत्रक प्रकल्पनैकशिल्पिनि त्रिलोचने रतिर्मम ॥७॥
अर्थ : जिनके मस्तक से धक-धक करती प्रचण्ड अग्नि ज्वाला ने कामदेव को भस्म कर दिया तथा जो शिव पार्वती जी के स्तन के अग्र भाग पर चित्रकारी करने में अति चतुर हैं (यहाँ पार्वती प्रकृति हैं, तथा चित्रकारिता का तात्पर्य सृजन है), उन शिव जी में मेरी प्रीति अटल हो।
नवीनमेघमण्डली निरुद्धदुर्धरस्फुरत् कुहूनिशीथिनीतमः प्रबन्धबद्धकन्धरः ।
निलिम्पनिर्झरीधरस्तनोतु कृत्तिसिन्धुरः कलानिधानबन्धुरः श्रियं जगद्धुरंधरः ॥८॥
अर्थ : जिनका कण्ठ नवीन मेघों की घटाओं से परिपूर्ण अमावस्या की रात्रि के सामान काला है, जो कि गज-चर्म, गंगा एवं बाल-चन्द्र द्वारा शोभायमान हैं तथा जो जगत का भार धारण करने वाले हैं, वे शिव जी हमे सभी प्रकार की सम्पन्नता प्रदान करें।
प्रफुल्लनीलपङ्कजप्रपञ्चकालिमप्रभा वलम्बिकण्ठकन्दलीरुचिप्रबद्धकन्धरम् ।
स्मरच्छिदं पुरच्छिदं भवच्छिदं मखच्छिदं गजच्छिदांधकच्छिदं तमन्तकच्छिदं भजे ॥९॥
अर्थ : जिनका कण्ठ और कन्धा पूर्ण खिले हुए नीलकमल की फैली हुई सुन्दर श्याम प्रभा से विभूषित है, जो कामदेव और त्रिपुरासुर के विनाशक, संसार के दुःखों को काटने वाले, दक्षयज्ञ विनाशक, गजासुर एवं अन्धकासुर के संहारक हैं तथा जो मृत्यू को वश में करने वाले हैं, मैं उन शिव जी को भजता हूँ।
अखर्व सर्वमङ्गलाकलाकदम्बमञ्जरी रसप्रवाहमाधुरी विजृम्भणामधुव्रतम् ।
स्मरान्तकं पुरान्तकं भवान्तकं मखान्तकं गजान्तकान्धकान्तकं तमन्तकान्तकं भजे ॥१०॥
अर्थ : जो कल्याणमय, अविनाशी, समस्त कलाओं के रस का आस्वादन करने वाले हैं, जो कामदेव को भस्म करने वाले हैं, त्रिपुरासुर, गजासुर, अन्धकासुर के संहारक, दक्षयज्ञ विध्भंसक तथा स्वयं यमराज के लिए भी यमस्वरूप हैं, मैं उन शिव जी को भजता हूँ।
जयत्वदभ्रविभ्रमभ्रमद्भुजङ्गमश्वस द्विनिर्गमत्क्रमस्फुरत्करालभालहव्यवाट् ।
धिमिद्धिमिद्धिमिध्वनन्मृदङ्गतुङ्गमङ्गल ध्वनिक्रमप्रवर्तित प्रचण्डताण्डवः शिवः ॥११॥
अर्थ : अत्यंत वेग से भ्रमण कर रहे सर्पों के फूफकार से क्रमश: ललाट में बढ़ी हूई प्रचण्ड अग्नि के मध्य मृदङ्ग की मंगलकारी उच्च धिम-धिम की ध्वनि के साथ ताण्डव नृत्य में लीन शिव जी सर्व प्रकार सुशोभित हो रहे हैं।
दृषद्विचित्रतल्पयोर्भुजङ्गमौक्तिकस्रजोर् गरिष्ठरत्नलोष्ठयोः सुहृद्विपक्षपक्षयोः ।
तृणारविन्दचक्षुषोः प्रजामहीमहेन्द्रयोः समप्रवर्तिक: कदा सदाशिवं भजाम्यहम ॥१२॥
अर्थ : कठोर पत्थर एवं कोमल शय्या, सर्प एवं मोतियों की मालाओं, बहुमूल्य रत्न एवं मिट्टी के टुकड़ों, शत्रु एवं मित्रों, राजाओं तथा प्रजाओं, तृणों तथा कमलों पर समान दृष्टि रखने वाले शिव को मैं भजता हूँ।
कदा निलिम्पनिर्झरीनिकुञ्जकोटरे वसन् विमुक्तदुर्मतिः सदा शिरः स्थमञ्जलिं वहन् ।
विमुक्तलोललोचनो ललामभाललग्नकः शिवेति मंत्रमुच्चरन् कदा सुखी भवाम्यहम् ॥१३॥
अर्थ : कब मैं गंगा जी के कछारगुञ्ज में निवास करता हुआ, निष्कपट हो, सिर पर अंजलि धारण कर चंचल नेत्रों तथा ललाट वाले शिव जी का मंत्रोच्चार करते हुए अक्षय सुख को प्राप्त करूंगा?
निलिम्प नाथनागरी कदम्ब मौलमल्लिका-निगुम्फनिर्भक्षरन्मधूष्णिकामनोहरः ।
तनोतु नो मनोमुदं विनोदिनीमहर्निशं परिश्रयं परं पदं तदङ्गजत्विषां चयः ॥१४॥
अर्थ : देवांगनाओं के सिर में गुंथे पुष्पों की मालाओं से झड़ते हुए सुगंधमय राग से मनोहर परम शोभा के धाम महादेव जी के अंगों की सुन्दरता परमानन्दयुक्त हमारे मन की प्रसन्नता को सर्वदा बढ़ाती रहे।
प्रचण्ड वाडवानल प्रभाशुभप्रचारणी महाष्टसिद्धिकामिनी जनावहूत जल्पना ।
विमुक्त वाम लोचनो विवाहकालिकध्वनिः शिवेति मन्त्रभूषगो जगज्जयाय जायताम् ॥१५॥
अर्थ : प्रचण्ड वडवानल की भांति पापों को भस्म करने में स्त्री स्वरूपिणी अणिमादिक अष्टमहासिध्दियों तथा चंचल नेत्रों वाली कन्याओं से शिव विवाह समय गान की मंगलध्वनि सब मंत्रों में परमश्रेष्ठ शिव मंत्र से पूरित, संसारिक दुःखों को नष्ट कर विजय पायें।
इमं हि नित्यमेवमुक्तमुत्तमोत्तमं स्तवं पठन्स्मरन्ब्रुवन्नरो विशुद्धिमेतिसंततम् ।
हरे गुरौ सुभक्तिमाशु याति नान्यथा गतिं विमोहनं हि देहिनां सुशङ्करस्य चिंतनम् ॥१६॥
अर्थ : इस उत्तमोत्तम शिव ताण्डव स्तोत्र को नित्य पढ़ने या श्रवण करने मात्र से प्राणी पवित्र हो, परमगुरु शिव में स्थापित हो जाता है तथा सभी प्रकार के भ्रमों से मुक्त हो जाता है।
पूजावसानसमये दशवक्त्रगीतं यः शम्भुपूजनपरं पठति प्रदोषे ।
तस्य स्थिरां रथगजेन्द्रतुरङ्गयुक्तां लक्ष्मीं सदैव सुमुखिं प्रददाति शम्भुः ॥१७॥
अर्थ : प्रात: शिवपूजन के अंत में इस रावणकृत शिवताण्डवस्तोत्र के गान से लक्ष्मी स्थिर रहती हैं तथा भक्त रथ, गज, घोड़े आदि सम्पदा से सर्वदा युक्त रहता है।
शिव तांडव स्तोत्र के लाभ
यद्यपि तांडव नृत्य भगवान शिव के उग्र प्रलयकालिक रूप का परिचायक है जब भगवान शिव सृष्टि का संहार करते हैं। लेकिन शिव तांडव स्तोत्र का पाठ से प्रसन्न होकर भगवान शिव दुःख, दरिद्रता, आधि, व्याधि, बंधन आदि का विनाश करते हैं। शिव तांडव स्त्रोत्र के पाठ से होने वाले लाभों को इस प्रकार व्यक्त किया जा सकता है :
- शिव ताण्डव स्तोत्र से कल्याण की प्राप्ति होती है।
- शिव ताण्डव स्तोत्र के पाठ से ईश्वर प्रेम की वृद्धि होती है।
- शिव ताण्डव स्तोत्र का पाठ करने से आनंद की प्राप्ति होती है।
- शिव ताण्डव स्तोत्र का पाठ करने से भक्ति की वृद्धि होती है।
- शिव ताण्डव स्तोत्र पाठ करने से श्री की वृद्धि होती है।
- शिव ताण्डव स्तोत्र पाठ करने से सभी प्रकार के सुख-सम्पदाओं की वृद्धि होती है।
- शिव ताण्डव स्तोत्र पाठ करने से विशेष सुख की प्राप्ति होती है।
- शिव ताण्डव स्तोत्र पाठ करने से अमङ्गल का निवारण और मङ्गल की प्राप्ति होती है।
- शिव ताण्डव स्तोत्र पाठ करने से सांसारिक दुःखों का नाश होता है।
- शिव ताण्डव स्तोत्र पाठ करने से भ्रमों का निवारण होता है।
- शिव ताण्डव स्तोत्र पाठ करने से स्थिर लक्ष्मी, रथ, गज, अश्व आदि सम्पत्तियों की प्राप्ति होती है।
शिव तांडव स्त्रोत कब पढ़ना चाहिए
शिव ताण्डव स्तोत्र पाठ करने का समय स्तोत्र के ही अंतिम श्लोक में बताया गया है :
पूजावसानसमये दशवक्त्रगीतं यः शम्भुपूजनपरं पठति प्रदोषे ।
तस्य स्थिरां रथगजेन्द्रतुरङ्गयुक्तां लक्ष्मीं सदैव सुमुखिं प्रददाति शम्भुः ॥
- पूजावसानसमये : का तात्पर्य है पूजा के अंतिम चरण में। भगवान शंकर की नित्य पूजा करनी चाहिये और पूजा के अंत में शिव ताण्डव स्तोत्र का पाठ करना चाहिये।
- शम्भुपूजनपरं पठति प्रदोषे : भगवान शम्भू की पूजा का मुख्य समय प्रदोष काल बताया गया है।
- प्रदोषकाल : रात्रि का प्रथम प्रहर प्रदोषकाल कहा जाता है। कुछ अन्य वचनों में ढाई मुहूर्त भी कहा गया है।
- इस प्रकार स्पष्ट होता है कि प्रदोषकाल में भगवान शिव की पूजा करके फिर शिव ताण्डव स्तोत्र का पाठ करना चाहिये।
शिव तांडव स्तोत्र कैसे याद करें
शिव ताण्डव स्तोत्र इस प्रकार याद करने पर सरलता से याद किया जा सकता है :
- सर्वप्रथम कई बार पाठ का अभ्यास करके शुद्ध पाठ करना सीखना चाहिये।
- फिर प्रतिदिन एक-एक श्लोक करके याद करना चाहिये।
- इस प्रकार याद करने से कुछ ही दिनों में शिवताण्डव स्तोत्र याद किया जा सकता है।
शिव तांडव स्तोत्र सरल भाषा में PDF
शिव तांडव स्तोत्र सरल भाषा में PDF डाउनलोड करने के लिये यहां क्लिक करें।
शिव तांडव नृत्य
ताण्डव नृत्य भगवान शिव का एक प्रचंड और विनाशकारी नृत्य है जो सृष्टि के विनाश का बोधक है। ताण्डव नृत्य भगवान शिव की शक्ति, क्रोध और मुख्य कार्य का प्रदर्शन है। यह नृत्य कल्याणकारी शिव के उस विनाशकारी रूप का प्रतिनिधित्व करता है, जब सृष्टि के अंतकाल में वो ब्रह्मांड को नष्ट करने के लिए तैयार होते हैं। भगवान शिव का तांडव नृत्य इस ब्रह्माण्ड की अनित्यता या नश्वरता का बोधक है। इससे यह ज्ञात होता है कि संसार में कुछ भी ऐसा नहीं जो नश्वर न हो।
ताण्डव नृत्य का वर्णन:
ताण्डव नृत्य में भगवान शिव के उग्र रूप को नृत्य करते हुए चित्रित किया जाता है। वे अपने हाथों में त्रिशूल, डमरू, अग्नि और खड्ग धारण करते हैं। तांडव नृत्य करते समय भगवान शिव अपने शरीर को उग्र गति से घुमाते हैं और वेगपूर्वक अपने पैरों से जमीन को पीटते हैं। वे अपने बालों को बिखेर देते हैं और अपनी आँखों को लाल कर लेते हैं तथा तृतीय नेत्र खोल देते हैं जिससे प्रलयंकारी अग्निज्वाला निकलती है।
ताण्डव नृत्य के प्रकार :
ताण्डव नृत्य के कई प्रकार बताये गये हैं –
- उग्र ताण्डव : यह ताण्डव नृत्य का सबसे प्रचंड और विनाशकारी रूप है।
- सौम्या ताण्डव : यह ताण्डव नृत्य का एक शांत और सुंदर रूप है।
- रौद्र ताण्डव : यह ताण्डव नृत्य का एक क्रोधित और भयानक रूप है।
- आनंद ताण्डव : यह ताण्डव नृत्य का एक प्रसन्नता और उत्सव का रूप है।
कर्मकांड विधि में शास्त्रोक्त प्रमाणों के साथ प्रामाणिक चर्चा की जाती है एवं कई महत्वपूर्ण विषयों की चर्चा पूर्व भी की जा चुकी है। तथापि सनातनद्रोही उचित तथ्य को जनसामान्य तक पहुंचने में अवरोध उत्पन्न करते हैं। एक बड़ा वैश्विक समूह है जो सनातन विरोध की बातों को प्रचारित करता है। गूगल भी उसी समूह का सहयोग करते पाया जा रहा है अतः जनसामान्य तक उचित बातों को जनसामान्य ही पहुंचा सकता है इसके लिये आपको भी अधिकतम लोगों से साझा करने की आवश्यकता है।