भगवान सूर्य प्रत्यक्ष देवता हैं साथ ही सौरमंडल के केंद्र और जीवन का स्रोत हैं। वे हमें प्रकाश, ऊर्जा और जीवन प्रदान करते हैं। वैदिक सनातन धर्म में सूर्य देव को सर्वोच्च देवताओं में से एक माना जाता है। सूर्योदय के समय सूर्य देव को अर्घ्य देना अत्यधिक प्रभावशाली होता है, यह एक पवित्र अनुष्ठान तो है ही साथ ही शारीरिक और मानसिक स्वास्थ्य के लिए भी लाभदायक है। यहां हम भगवान सूर्य को अर्घ्य देने के 70 मंत्रों को जानेगें जिसका अत्यधिक महत्व होता है।
सूर्य देव को अर्घ्य देने के नियम और विधि : 70 सूर्य अर्घ्य मंत्र संस्कृत में
सूर्य देव सौरमंडल के केंद्र और जीवन का प्रमुख स्रोत हैं एवं सम्पूर्ण सृष्टि के पालक-पोषक हैं। सूर्योदय के समय सूर्य देव को अर्घ्य देने का विधान शास्त्रोक्त है और सृष्टि के आरम्भ से ही चला आ रहा है। कुछ लोग इसे परंपरा मात्र ही कहते हैं जो कि उचित नहीं है। भगवान सूर्य हमें प्रकाश, ऊर्जा और जीवन प्रदान करते हैं। शास्त्रों में नित्यप्रति भगवान सूर्य को अर्घ्य देने का विधान है।
दुःख, दरिद्रता, रोग आदि ऐसे विषय हैं जिससे सभी मुक्ति चाहते हैं और इसके से सबसे महत्वपूर्ण विधान है सूर्य को 70 अर्घ्य देने का अनुष्ठान। आधुनिक सोच में कुछ इस प्रकार की बातें भी बताई जाती है – सूर्य अर्घ्य देने से व्यक्ति में सकारात्मक ऊर्जा का संचार होता है, आत्मविश्वास बढ़ता है और रोग प्रतिरोधक क्षमता मजबूत होती है।
सूर्य अर्घ्य देने का समय
उदित होते सूर्य को अर्घ्य देना सर्वाधिक महत्वपूर्ण होता है। सांध्यकालों में मन्देह नामक राक्षस सूर्य को घेरे रहते हैं और गायत्री मंत्र से अभिमंत्रित जल का अर्घ्य जब दिया जाता है तो उन राक्षसों का संहार हो जाता है। इसलिये नित्य प्रति प्रातः संध्या के साथ साथ अन्य संध्याओं में भी भगवान सूर्य को अर्घ्य देना चाहिये। यह नित्य संध्या विधि के अंतर्गत आता है। यहां विशेष अर्घ्य देने का विधान बताया गया है जिसके लिये प्रातः काल महत्वपूर्ण है।

सूर्य अर्घ्य देने की सामग्री
- ताम्रपात्र : सूर्य देव को ताम्रपात्र (तांबे के लोटे) से जल अर्पित करना अधिक लाभकारी होता है।
- शुद्ध जल : गंगाजल सर्वाधिक महत्वपूर्ण है यदि गंगाजल अनुपलब्ध हो तो अन्य पवित्र नदियों के जल अथवा तालाब-कूप आदि के जल से भी अर्घ्य दिया जा सकता है।
- रक्तचंदन : जल में रक्तचंदन अथवा कुमकुम मिलाकर अर्घ्य देना चाहिये ।
- लाल फूल : लाल रंग सूर्य देव का प्रिय रंग है। इसलिए जल में लाल फूल भी डालना चाहिये। करवीर पुष्प अधिक महत्वपूर्ण है, करवीर अनेकों रंग के होते हैं उनमें से रक्त करवीर पुष्प का प्रयोग करे।
- अक्षत : जो चावल क्षत (टूटा) न हो उसे अक्षत कहा जाता है। सूर्य को अर्घ्य देने के लिये जल में लाल अक्षत भी देना चाहिये।
- दूर्वा : 70 सूर्यार्घ्य विधान में दूर्वा प्रयोग भी बताया गया है अतः जल में दूर्वा का भी प्रयोग करे।
70 अर्घ्य देने के लिये बड़ा ताम्रपात्र प्रयोग करना चाहिये और साथ ही यह भी ध्यान रखना चाहिये कि जल सहित उसका वजन उतना ही हो जितना उठाया जा सके और अर्घ्य दिया जा सके।
सूर्य अर्घ्य देने की विधि
- शुद्धिकरण : किसी भी कर्म में सर्वप्रथम शुद्धिकरण आवश्यक होता है अतः सूर्य अर्घ्य देने से पहले स्नानादि करके शरीर को शुद्ध कर लें।
- पूर्वाभिमुख : भगवान सूर्य की उपासना पूर्वाभिमुख करें अर्थात पूर्व दिशा में मुख करके बैठें।
- अर्घ्य निर्माण : सूर्य देव के मंत्रों का जाप करते हुए ताम्रपात्र में पवित्र जल भरकर जल में रक्तचंदन, कुमकुम, लाल फूल और रक्ताक्षत डालें।
- अर्घ्य दान : दोनों हाथों से तांबे के लोटे को पकड़कर सूर्य देव को जल अर्पित करें। जल की धारा सूर्य पर पड़नी चाहिए।
- 70 अर्घ्य : सूर्य को विशेष प्रसन्न करने के लिये 70 अर्घ्य देने का विधान भी है जिसकी विशेष विधि आगे दी गयी है।
70 सूर्य अर्घ्य का महत्व और विधान
भगवान सूर्य को 70 अर्घ्य देने का विधान और माहात्म्य स्कन्द पुराण में वर्णित है जो इस प्रकार है :
॥ अथ स्कन्दपुराणोक्त सूर्य सप्ततिनामार्घ्यमाहात्म्यम् ॥
हंसो भानुः सहस्रांशुस्तपनस्तापनो रविः । विकर्तनो विवस्वाँश्च विश्वकर्मा विभावसुः ॥
विश्वरूपो विश्वकर्ता मार्तण्डो मिहिरोंऽशुमान् । आदित्यश्चाष्णगुः सूर्योऽर्यमा ब्रध्नो दिवाकरः ॥
द्वादशात्मा सप्तहयो भास्करोऽहस्करः खगः । सूरः प्रभाकरः श्रीमाँल्लोकचक्षुर्ग्रहेश्वरः ॥
त्रिलोकेशो लाकसाक्षी तमोऽरिः शाश्वतः शुचिः । गभस्तिहस्तस्तीव्रांशुस्तरणिः समहोरणिः ॥
द्युमणिहरिदश्वोऽर्को भानुमान् भयनाशनः । छन्दोऽश्वा वेदवेद्यश्च भाश्वान् पूषा वृषाकपिः॥
एकचक्ररथो मित्रो मन्देहारिस्तमिस्रहा । दैत्यहा पापहर्ता च धर्मो धर्मप्रकाशकः ॥
हेलिकश्चित्रभानुश्च कलिघ्नस्तार्क्ष्यवाहनः । दिक्पतिः पद्मिनीनाथः कुशेशयकरो हरिः ॥
धर्मरश्मिर्दुर्नि रीक्ष्यश्चण्डांशुः कश्यपात्मजः । एभिः सप्ततिसंख्याकैः पुण्यैः सूर्यस्य नामभिः ॥
प्रणवादिचतुर्थ्यन्तैर्नमस्कारसमन्वितैः । प्रत्येकमुच्चरन्नाम दृष्ट्वा दृष्ट्वा दिवाकरम् ॥
विगृह्य पाणियुग्मेन ताम्रपात्रं सुनिर्मलस् । जानुभ्यामवनिङ्गत्वा परिपूर्वं जलेन च ॥
करवीरादिकुसुमैः रक्तचन्दनमिश्रितैः । दूर्वाङ्कुरेरक्षतैश्च निःक्षिप्तैः पात्रमध्यतः ॥
दद्यादर्घ्यमनर्घ्याय सवित्रे ध्यानपूर्वकम् । उपमौलिं समानीय तत्पात्रं नान्यदिङ्मनाः ॥
प्रतिमन्त्रन्नमस्कुर्यादुदयास्तमये रविम् । अनया नामसप्तत्या महामन्त्ररहस्यया ॥
एवं कुर्वन्नरो जातु न दरिद्रो न दुःखभाक् । व्याधिभिर्मुच्यते घोरैरपि जन्मान्तरार्जितैः ॥
विनौषधैर्विना वैद्यैर्विना पथ्यपरिग्रहैः । कालेन निधनं प्रातः सूर्यलोके महीयते ॥
स्कन्दपुराणोक्त 70 सूर्यार्घ्य दान विधान में प्रथम तो भगवान सूर्य के 70 नाम बताये गये हैं जिन नामों से अर्घ्य देना चाहिये। तत्पश्चात यह कहा गया है कि इन सभी नामों के आदि में प्रणव (ॐ) का उच्चारण करे, तत्पश्चात चतुर्थी विभक्ति में नाम का प्रयोग करे और फिर नमः का उच्चारण करे। तत्पश्चात यह भी कहा गया है कि प्रत्येक मंत्रों का उच्चारण करके सूर्य भगवान का दर्शन भी करे।
70 सूर्यार्घ्य अनुष्ठान के लिये जानुपर्यन्त जल में स्थित होने के लिये कहा गया है अतः अर्घ्य पात्र कुछ बड़ा चाहिये जिससे 70 अर्घ्य दिया जा सके। अर्घ्य पात्र में अर्घ्य सामग्री लेकर जानपर्यन्त जल में जाकर अर्घ्यपात्र को शिर के समकक्ष रखकर, सूर्य का ध्यान करते हुये बताये गये 70 नामों से अर्घ्य प्रदान करे।
70 सूर्य अर्घ्य देने के लाभ
सूर्य को इस प्रकार विधि पूर्वक 70 अर्घ्य का अनुष्ठान करने से निम्नलिखित लाभ होते हैं :
- दरिद्रता का निवारण : इस प्रकार से सूर्य को 70 अर्घ्य का अनुष्ठान करने वाला व्यक्ति दरिद्र नहीं होता है, अर्थात दरिद्रता का शमन होता है।
- दुःखों का अंत : इस प्रकार से सूर्य को 70 अर्घ्य का अनुष्ठान करने वाला व्यक्ति दुःखी नहीं होता है अर्थात दुःखों का नाश होता है।
- रोगों का शमन : इस प्रकार से सूर्य को 70 अर्घ्य का अनुष्ठान करने वाला व्यक्ति व्याधिमुक्त होता है अर्थात रोगों का नाश होता है।
- अकाल मृत्यु का निवारण : इस प्रकार से सूर्य को 70 अर्घ्य का अनुष्ठान करने वाले की नियतकाल पर ही मुक्ति होती है अर्थात अकालमृत्यु नहीं होती, दीर्घायु होता है।
- विशेष लाभ : इसके साथ ही स्कंदपुराण में तो इतना तक कहा गया है कि इस प्रकार का अनुष्ठान करने से रोगी को ओषधि की भी आवश्यकता नहीं होती बिना ओषधि के ही स्वस्थ भी होता है। यद्यपि वर्त्तमान युग में यह तथ्य चमत्कारिक लगता है और विज्ञान को धत्ता बताता है एवं इस प्रकार की चर्चा करना भी वैधानिक रूप से निषिद्ध है तथापि यह मेरा वैयक्तिक विचार नहीं है यह स्कन्दपुराणोक्त विधान है।
सूर्य देव को 70 अर्घ्य देने की विशेष विधि – स्कन्दपुराणोक्त
सूर्य को 70 अर्घ्य देना एक विशेष अनुष्ठान है इसे नित्यकर्म अथवा नित्यकर्म का अंग नहीं समझना चाहिये। सूर्य को 70 अर्घ्य देना एक विशेष अनुष्ठान है इसे नित्यकर्म अथवा नित्यकर्म का अंग नहीं समझना चाहिये।
प्रातः काल स्नानादि नित्यकर्म संपन्न करके जिस जलाशय पर यह विशेष अनुष्ठान करना हो वहां पर संकल्पादि करने के लिये तट पर मंडल निर्माण कर ले। अर्घ्य सामग्री व्यवस्थित करके पूर्वाभिमुख बैठे और पवित्रीकरणादि कर ले। तत्पश्चात त्रिकुशा-तिल-जलादि संकल्प द्रव्य लेकर संकल्प करे :
संकल्प मंत्र : ॐ अद्यादि ……… मासे ……… पक्षे …….. तिथौ …….. गोत्रस्य मम श्री…… शर्मणः उपस्थितशरीराविरोधेन ऐहिक जन्मान्तरार्जितपथ्यपरिग्रहाद्यौषधरहित सकलरुग्झटितिप्रशम पूर्वक दारिद्र्यानुत्पत्ति सकलदुःखाभावान्तः कालिक सूर्यलोकमहितत्व कामो हंसादिसप्ततिनामभिः सूर्याय सप्ततिसंख्यकार्घ्यदानमहं करिष्ये ॥

तत्पश्चात अर्घ्य पात्र (बड़ा ताम्रपात्र) और अन्य अर्घ्य सामग्री लेकर जानपर्यन्त जल जाये। अर्घ्यपात्र में जल भर ले। तत्पश्चात अर्घ्यपात्र के जल में अन्य अर्घ्यसामग्री रक्तकरवीर या अन्य लाल फूल, रक्तचंदन, रक्ताक्षत, दूर्वा आदि दे। तत्पश्चात अर्घ्यपात्र को दोनों हाथों से पकड़कर सिर के समकक्ष रखे और सूर्य का ध्यान करते हुये क्रमशः 70 नामों से अर्घ्य दे।
70 सूर्य अर्घ्य मंत्र संस्कृत में – सूर्य को अर्घ्य देने का मंत्र
ॐ एहि सूर्य सहस्रांशो तेजोराशे जगत्पते । अनुकम्पय मां भक्त्या गृहाणार्घ्यं दिवाकर ॥ एषोर्घ्यः :
- ॐ हंसाय नमः ॥१॥
- ॐ भानवे नमः ॥२॥
- ॐ सहस्रांशवे नमः ॥३॥
- ॐ तपनाय नमः ॥४॥
- ॐ तापनाय नमः॥५॥
- ॐ रवये नमः ॥६॥
- ॐ विकर्तनाय नमः ॥७॥
- ॐ विवस्वते नमः ॥८॥
- ॐ विश्वकर्मणे नमः ॥९॥
- ॐ विभावसवे नमः ॥१०॥
- ॐ विश्वरूपाय नमः ॥११॥
- ॐ विश्वकर्त्रे नमः ॥१२॥
- ॐ मार्तण्डाय नमः ॥१३॥
- ॐ मिहिराय नमः ॥१४॥
- ॐ अंशुमते नमः ॥१५॥
- ॐ आदित्याय नमः ॥१६॥
- ॐ उष्णगवे नमः ॥१७॥
- ॐ सूर्याय नमः ॥१८॥
- ॐ अर्यम्णे नमः ॥१९॥
- ॐ ब्रध्नाय नमः ॥२०॥
- ॐ दिवाकराय नमः ॥२१॥
- ॐ द्वादशात्मने नमः ॥२२॥
- ॐ सप्तहयाय नमः ॥२३॥
- ॐ भास्कराय नमः ॥२४॥
- ॐ अहस्कराय नमः ॥२५॥
- ॐ खगाय नमः ॥२६॥
- ॐ सूराय नमः ॥२७॥
- ॐ प्रभाकराय नमः ॥२८॥
- ॐ श्रीमते नमः ॥२९॥
- ॐ लोकचक्षुषे नमः ॥३०॥
- ॐ ग्रहेश्वराय नमः ॥३१॥
- ॐ त्रिलोकेशाय नमः ॥३२॥
- ॐ लोकसाक्षिणे नमः ॥३३॥
- ॐ तमोऽरये नमः ॥३४॥
- ॐ शाश्वताय नमः ॥३५॥
- ॐ शुचये नमः ॥३६॥
- ॐ गभस्तिहस्ताय नमः ॥३७॥
- ॐ तीव्रांशवे नमः ॥३८॥
- ॐ तरणये नमः ॥३९॥
- ॐ समहोरणये नमः ॥४०॥
- ॐ द्युमणये नमः ॥४१॥
- ॐ हरिदश्वाय नमः ॥४२॥
- ॐ अर्काय नमः ॥४३॥
- ॐ भानुमते नमः ॥४४॥
- ॐ भयनाशनाय नमः ॥४५॥
- ॐ छन्दोश्वाय नमः ॥४६॥
- ॐ वेदवेद्याय नमः ॥४७॥
- ॐ भास्वते नमः ॥ ४८॥
- ॐ पूष्णे नमः ॥४९॥
- ॐ वृषाकपये नमः ॥५०॥
- ॐ एकचक्ररथाय नमः ॥५१॥
- ॐ मित्राय नमः ॥५२॥
- ॐ मन्देहारये नमः ॥५३॥
- ॐ तमिस्रघ्ने नमः ॥५४॥
- ॐ दैत्यघ्ने नमः ॥५५॥
- ॐ पापहत्रे नमः ॥५६॥
- ॐ घर्माय नमः ॥५७॥
- ॐ घर्मप्रकाशकाय नमः ॥५८॥
- ॐ हेलिकाय नमः ॥५९॥
- ॐ चित्रभानवे नमः ॥६०॥
- ॐ कलिघ्नाय नमः ॥६१॥
- ॐ तार्क्ष्यवाहनाय नमः ॥६२॥
- ॐ दिक्पतये नमः ॥६३॥
- ॐ पद्मिनीनाथाय नमः ॥६४॥
- ॐ कुशेशयकराय नमः ॥६५॥
- ॐ हरये नमः ॥६६॥
- ॐ घर्मरश्मये नमः ॥६७॥
- ॐ दुर्निरीक्ष्याय नमः ॥६८॥
- ॐ चण्डांशवे नमः ॥६९॥
- ॐ कश्यपात्मजाय नमः ॥७०॥
तत्पश्चात विभिन्न मंत्रों से भगवान सूर्य को नमस्कार करे। यदि अन्य स्तोत्रादि का भी पाठ करना हो तो करे :
ॐ नमः पंकजहस्ताय नमः पङ्कजमालिने ।
नमः पङ्ङ्गनेत्राय भास्कराय नमो नमः ॥
नमः सवित्रे जगदेकचक्षुषे जगत्प्रसूति स्थितिनाशहेतवे ।
त्रयीमयाय त्रिगुणात्मधारिणे विरिञ्चिनारायणशङ्करात्मने ॥
जपाकुसुम संकाशं काश्यपेयं महाद्युतिम।
तमोsरिं सर्वपापघ्नं प्रणतोsस्मि दिवाकरं ॥
ॐ आदित्यस्य नमस्कारं ये कुर्वन्ति दिनेदिने।
जन्मान्तरसहस्रेषु दारिद्रयं नोपजायते॥
निष्कर्ष : सूर्य अर्घ्य एक सरल लेकिन प्रभावशाली अनुष्ठान है। इसे नियमित रूप से करने से व्यक्ति को कई लाभ मिलते हैं। सूर्य अर्घ्य देने से जीवन में सकारात्मक ऊर्जा का संचार होता है और सभी प्रकार के कष्टों से मुक्ति मिलती है। सूर्य अर्घ्य देना न केवल एक धार्मिक अनुष्ठान है बल्कि यह एक वैज्ञानिक तथ्य भी है। सूर्य की किरणों में विटामिन डी होता है जो हमारे शरीर के लिए बहुत आवश्यक है। इसलिए, सूर्य अर्घ्य देना हमारे स्वास्थ्य के लिए बहुत लाभकारी है।
किन्तु हमें मात्र सांसारिक लाभ सोचकर ही धार्मिक कृत्य नहीं करने चाहिये मुख्य लाभ आध्यात्मिक ही ध्येय होना चाहिये। सूर्य को 70 अर्घ्य देने के अनुष्ठान से आध्यात्मिक और सांसारिक दोनों ही लाभ प्राप्त किये जा सकते हैं।
कर्मकांड विधि में शास्त्रोक्त प्रमाणों के साथ प्रामाणिक चर्चा की जाती है एवं कई महत्वपूर्ण विषयों की चर्चा पूर्व भी की जा चुकी है। तथापि सनातनद्रोही उचित तथ्य को जनसामान्य तक पहुंचने में अवरोध उत्पन्न करते हैं। एक बड़ा वैश्विक समूह है जो सनातन विरोध की बातों को प्रचारित करता है। गूगल भी उसी समूह का सहयोग करते पाया जा रहा है अतः जनसामान्य तक उचित बातों को जनसामान्य ही पहुंचा सकता है इसके लिये आपको भी अधिकतम लोगों से साझा करने की आवश्यकता है।