विष्णु अष्टक स्तोत्र (vishnu ashtakam stotram) भगवान विष्णु के प्रति अपनी भक्ति और श्रद्धा व्यक्त करने का एक सरल और प्रभावी माध्यम है। यह आध्यात्मिक उन्नति, मानसिक शांति और सांसारिक कल्याण की प्राप्ति में सहायक होता है। स्तोत्र का पाठ मन को शांति और पवित्रता से भर देता है। भगवान विष्णु को जगत के पालनहार के रूप में स्मरण करने से भक्तों में सुरक्षा और स्थिरता की भावना आती है। यहां भगवान विष्णु के 3 अष्टक स्तोत्र दिये गये हैं।
विष्ण्वष्टकम् : विष्णु अष्टक स्तोत्र संस्कृत में – vishnu ashtakam stotram
पुरः सृष्टाविष्टः पुरुष इति तत्प्रेक्षणमुखः
सहस्राक्षो भुक्त्वा फलमनुशयी शास्ति तमुत ।
स्वयं शुद्धं शान्तं निरवधिसुखं नित्यमचलं
नमामि श्रीविष्णुं जलधितनयासेवितपदम् ॥१॥
अनन्तं सत्सत्यं भवभयहरं ब्रह्म परमं
सदा भातं नित्यं जगदिदमितः कल्पितपरम् ।
मुहुर्ज्ञानं यस्मिन् रजतमिव शुक्तौ भ्रमहरं नमामि०..॥२॥
मतौ यत्सद्रूपं मृगयति बुधोऽतन्निरसनात्
न रज्जौ सर्पोऽपि मुकुरजठरे नास्ति वदनम् ।
अतोऽपार्थं सर्वं न हि भवति यस्मिंश्च तमहं नमामि०…॥३॥
भ्रमद्धीविक्षिप्तेन्द्रियपथमनुष्यैर्हृदि विभुं
नयं वै वेद स्वेन्द्रियमपि वसन्तं निजमुखम् ।
सदा सेव्यं भक्तैर्मुनिमनसि दीप्तं मुनिनुतं नमामि०…॥४॥
यत्तद्रूपं न हि तु नैर्गुण्यममलं
यथा ये व्यक्तं ते सततमकलङ्के श्रुतिनुतम् ।
यदाहुः सर्वत्रास्खलितगुणसत्ताकमतुलं नमामि०…॥५॥
लयादौ यस्मिन्यद्विलयमप्युद्यत्प्रभवति
तथा जीवोपेतं गुरुकरुणया बोधजनने ।
गतं चात्यन्तान्तं व्रजति सहसा सिन्धुनदवन्नमामि०….॥६॥
जडं सङ्घातं यन्निमिषलवलेशेन चपलं
यथा स्वं स्वं कार्यं प्रथयति महामोहजनकम् ।
मनोवादग्जीवानां न निविशति यं निर्भयपदं नमामि०….॥७॥
गुणाख्याने यस्मिन्प्रभवति न वेदोऽपि नितरां
निषिध्यद्वाक्यार्थैश्चकितचकितं योऽस्य वचनम् ।
स्वरूपं यद्गत्वा प्रभुरपि च तूष्णीं भवति तं
नमामि श्रीविष्णुं जलधितनयासेवितपदम् ॥८॥
विण्वष्टकं यः पठति प्रभाते नरोऽप्यखण्डं सुखमश्नुते च ।
यन्नित्यबोधाय सुबुद्धिनोक्तं रधूत्तमाख्येन विचार्य सम्यक् ॥९॥
॥ इति श्रीविष्ण्वष्टकं सम्पूर्णम् ॥
विष्ण्वष्टकम् – 2
शतानीकः
ब्रह्मन्नपारे संसारे रागादिव्याप्तमानसः ।
शब्दादिलुब्धपुरुषः किं कुर्वन्नावसीदति ॥१॥
श्री शौनकः
स्वे महिम्नि स्थितं देवमप्रमेयमजं विभुम् ।
शोकमोहविनिर्मुक्तं विष्णुं ध्यायन्न सीदति ॥२॥
प्रमाणमतिगं ब्रह्म वेदान्तेषु प्रकाशितम् ।
आद्यं पुरुषमीशानं विष्णुं ध्यायन्न सीदति ॥३॥
अमृतं साधनं साध्यं यं पश्यन्ति मनीषिणः ।
ज्ञेयाख्यं परमात्मानं विष्णुं ध्यायन्न सीदति ॥४॥
अशनाद्यैरसंस्पृष्टं सेवितं योगिभिस्सदा ।
सर्वदोषविनिर्मुक्तं विष्णुं ध्यायन्न सीदति ॥५॥
क्षराक्षरविनिर्मुक्तं जन्ममृत्युविवर्जितम् ।
अभयं सत्यसङ्कल्पं विष्णुं ध्यायन्न सीदति ॥६॥
अतुल्यसखधर्माणं व्योमदेहं सनातनम् ।
धर्माधर्मविनिर्मुक्तं विष्णुं ध्यायन्न सीदति ॥७॥
व्यासाद्यैर्मुनिभिस्सिद्धैः ध्यानयोगपरायणैः ।
अर्चितं भावकुसुमैः विष्णुं ध्यायन्न सीदति ॥८॥
विष्ण्वष्टकमिदं पुण्यं योगिनां प्रीतिवर्धनम् ।
यः पठेत्परया प्रीत्या स गच्छेद्विष्णुसाम्यताम् ॥९॥
एतत् पुण्यं पापहरं धन्यं दुःस्वप्ननाशनम् ।
पठतां शृण्वतां चैव विष्णोर्माहात्म्यमुत्तमम् ॥१०॥
॥ इति श्रीविष्ण्वष्टकं सम्पूर्णम् ॥
विष्ण्वष्टकम् – 3 (हिन्दी अर्थ सहित)
विष्णुं विशालारुण पद्म नेत्रं
विभान्त मीशाम्बुजयोनि पूजितं।
सनातनं सन्नति शोधितं परं
पुमांसमाद्यं सततं प्रपद्ये ॥१॥
अर्थ: मैं उन भगवान विष्णु की शरण लेता हूँ, जिनके विशाल और लाल कमल के समान नेत्र हैं, जो देदीप्यमान हैं और ब्रह्मा आदि देवताओं से पूजित हैं। वे सनातन हैं, उत्तम ज्ञान से प्राप्त करने योग्य हैं, परम पुरुष हैं और आदि कारण हैं।
कल्याणदं कामफलप्रदायकं, कारुण्यरूपं कलिकल्मषघ्नम्।
कलानिधिं कामतनूजमाद्यं, नमामि लक्ष्मीशमहं महान्तम् ॥२॥
अर्थ: मैं उन महान लक्ष्मीपति को नमस्कार करता हूँ, जो कल्याण प्रदान करने वाले, मनोवांछित फल देने वाले, करुणा के स्वरूप, कलियुग के पापों को नष्ट करने वाले, कलाओं के भंडार और कामदेव के आदि कारण हैं।
पीताम्बरं भ्रुङ्गनिभं पितामह-, प्रमुख्य वन्द्यं जगदादि देवम्।
किरीट केयूर मुखैः प्रशोभितं, श्री केशवं सन्तत मानतोऽस्मि ॥३॥
अर्थ: मैं उन श्री केशव को निरंतर प्रणाम करता हूँ, जो पीले वस्त्र धारण करते हैं, भौंरों के समान (श्याम वर्ण) हैं, ब्रह्मा आदि प्रमुखों से वंदनीय हैं, जगत के आदि देव हैं और मुकुट, बाजूबंद आदि आभूषणों से सुशोभित हैं।
भुजङ्ग तल्पं भुवनेक नाथं, पुनः पुनः स्वीकृत काय माद्यम्।
पुरन्दराद्यैरपि वन्दितं सदा, मुकुन्दमत्यन्त मनोहरं भजे ॥४॥
अर्थ: मैं उन अत्यंत मनोहर मुकुंद का भजन करता हूँ, जिनका बिस्तर शेषनाग है, जो ब्रह्मांड के एकमात्र स्वामी हैं, जिन्होंने बार-बार आदि रूप धारण किए हैं और जो इंद्र आदि देवताओं से भी सदा वंदित हैं।
क्षीराम्बुराशेर भितः स्फुरन्तं, शयान माद्यन्त विहीन मव्ययम्।
सत्सेवितं सारसनाभ मुच्चैः, विघोषितं केशि निषूदनं भजे ॥५॥
अर्थ: मैं उनका भजन करता हूँ जो क्षीरसागर के मध्य में देदीप्यमान हैं, आदि और अंत से रहित अविनाशी रूप में शयन करते हैं, श्रेष्ठ भक्तों से सेवित हैं, जिनकी नाभि से कमल उत्पन्न हुआ है और जो केशी नामक असुर का वध करने वाले के रूप में प्रसिद्ध हैं।
भक्तार्त्ति हन्तार महर्न्निशन्तं, मुनीन्द्र पुष्पाञ्जलि पाद पङ्कजम्।
भवघ्न माधार महाश्रयं परं, परापरं पङ्कज लोचनं भजे ॥६॥
अर्थ: मैं उन कमल नेत्र वाले भगवान का भजन करता हूँ, जो भक्तों के दुखों को दिन-रात हरने वाले हैं, जिनके चरण कमल मुनियों द्वारा पुष्पों की अंजलि से पूजित हैं, जो संसार के बंधनों को नष्ट करने वाले, महान आश्रय और पर से भी परे हैं।
नारायणं दानव कानना नलं, नत प्रियं नाम विहीन मव्ययम्।
हर्त्तुं भुवो भार मनन्त विग्रहं, स्वस्वीकृत क्षमा वर मीडितोऽस्मि ॥७॥
अर्थ: मैं उन नारायण की स्तुति करता हूँ, जो राक्षसों के वन के लिए अग्नि के समान हैं, अपने भक्तों से प्रेम करने वाले हैं, जिनका कोई विशेष नाम नहीं है (अनंत नामों वाले), अविनाशी हैं, पृथ्वी का भार हरने के लिए अनंत रूप धारण करते हैं और जिन्होंने स्वेच्छा से पृथ्वी को श्रेष्ठ वरदान के रूप में स्वीकार किया है।
नमोऽस्तु ते नाथ! वर प्रदायिन्, नमोऽस्तु ते केशव! किङ्करोऽस्मि।
नमोऽस्तु ते नारद पूजिताङ्घ्रे, नमो नमस्त्वच्चरणं प्रपद्ये ॥८॥
अर्थ: हे नाथ! आपको नमस्कार है, वरदान देने वाले आपको नमस्कार है! हे केशव! आपको नमस्कार है, मैं आपका सेवक हूँ। आपको नमस्कार है, जिनके चरणों की नारद मुनि पूजा करते हैं, आपको बार-बार नमस्कार है, मैं आपके चरणों की शरण लेता हूँ।
॥ फलश्रुति ॥
विष्ण्वष्टकमिदं पुण्यं यः पठेद्भक्तितो नरः।
सर्वपापविनिर्मुक्तो विष्णुलोकं स गच्छति ॥
अर्थ: जो मनुष्य भक्तिपूर्वक इस पवित्र विष्णु अष्टक का पाठ करता है, वह सभी पापों से मुक्त हो जाता है और विष्णु लोक को प्राप्त होता है।
कर्मकांड विधि में शास्त्रोक्त प्रमाणों के साथ प्रामाणिक चर्चा की जाती है एवं कई महत्वपूर्ण विषयों की चर्चा पूर्व भी की जा चुकी है। तथापि सनातनद्रोही उचित तथ्य को जनसामान्य तक पहुंचने में अवरोध उत्पन्न करते हैं। एक बड़ा वैश्विक समूह है जो सनातन विरोध की बातों को प्रचारित करता है। गूगल भी उसी समूह का सहयोग करते पाया जा रहा है अतः जनसामान्य तक उचित बातों को जनसामान्य ही पहुंचा सकता है इसके लिये आपको भी अधिकतम लोगों से साझा करने की आवश्यकता है।