सूर्य अष्टोत्तर शतनाम स्तोत्र | surya 108 naam stotra

सूर्य अष्टोत्तर शतनाम स्तोत्र | surya 108 naam stotra

सूर्य को ग्रहराज कहा गया है और ग्रहराज की प्रसन्नता विशेष आवश्यक है, क्योंकि राजा की अप्रसन्नता होने पर अन्य मंत्री आदि सभी की प्रसन्नता निरर्थक हो जाती है। वहीं यदि राजा प्रसन्न हो तो अन्यों का अप्रसन्न होना भी उतना हानिकारक नहीं हो पाता जितना राजा के उदासीन होने पर हो सकता है। जिस पर राजा प्रसन्न हो उसपर अमात्यादि भी अपनी कृपा करते हैं। किसी को भी प्रसन्न करने के लिये स्तोत्र का विशेष महत्व बताया गया है। स्तोत्रों में देवताओं के 108 नाम अर्थात अष्टोत्तरशत नामों का भी विशेष होता है। यहां सूर्य का अष्टोत्तरशतनाम स्तोत्र (surya 108 naam stotra) दिया गया है।

भविष्यपुराणोक्त आदित्याष्टोत्तरनामस्तोत्रम्

सूर्य अष्टोत्तरशतनाम का एक अन्य प्रकार भविष्यपुराण में प्राप्त होता है। भविष्यपुराणोक्त आदित्य अष्टोत्तरशतनाम स्तोत्र का पाठ, नाम से पूजा और हवन तीनों किया जाता है। नीचे भविष्यपुराणोक्त आदित्य अष्टोत्तरशतनाम स्तोत्र भी दिया जा रहा है :

॥ इति श्रीभविष्यपुराणे आदित्यस्तोत्रं सम्पूर्णम् ॥

कर्मकांड विधि में शास्त्रोक्त प्रमाणों के साथ प्रामाणिक चर्चा की जाती है एवं कई महत्वपूर्ण विषयों की चर्चा पूर्व भी की जा चुकी है। तथापि सनातनद्रोही उचित तथ्य को जनसामान्य तक पहुंचने में अवरोध उत्पन्न करते हैं। एक बड़ा वैश्विक समूह है जो सनातन विरोध की बातों को प्रचारित करता है। गूगल भी उसी समूह का सहयोग करते पाया जा रहा है अतः जनसामान्य तक उचित बातों को जनसामान्य ही पहुंचा सकता है इसके लिये आपको भी अधिकतम लोगों से साझा करने की आवश्यकता है।

आगे भविष्यपुराणोक्त आदित्य अष्टोत्तर शतमान को पृथक-पृथक करके दिया गया है आगे पढ़ें :

Leave a Reply