सूर्य को ग्रहराज कहा गया है और ग्रहराज की प्रसन्नता विशेष आवश्यक है, क्योंकि राजा की अप्रसन्नता होने पर अन्य मंत्री आदि सभी की प्रसन्नता निरर्थक हो जाती है। वहीं यदि राजा प्रसन्न हो तो अन्यों का अप्रसन्न होना भी उतना हानिकारक नहीं हो पाता जितना राजा के उदासीन होने पर हो सकता है। जिस पर राजा प्रसन्न हो उसपर अमात्यादि भी अपनी कृपा करते हैं। किसी को भी प्रसन्न करने के लिये स्तोत्र का विशेष महत्व बताया गया है। स्तोत्रों में देवताओं के 108 नाम अर्थात अष्टोत्तरशत नामों का भी विशेष होता है। यहां सूर्य का अष्टोत्तरशतनाम स्तोत्र (surya 108 naam stotra) दिया गया है।
सूर्य अष्टोत्तर शतनाम स्तोत्र | surya 108 naam stotra
धौम्य उवाच
सूर्योऽर्यमा भगस्त्वष्टा पूषार्कः सविता रविः।
गभस्तिमानजः कालो मृत्युर्धाता प्रभाकरः ॥१॥
पृथिव्यापश्च तेजश्च खं वायुश्च परायणम्।
सोमो बृहस्पतिः शुक्रो बुधो अंगारक एव च॥२॥
इन्द्रो विवस्वान् दीप्तांशुः शुचिः शौरिः शनैश्चरः।
ब्रह्मा विष्णुश्च रुद्रश्च स्कन्दो वै वरुणो यमः॥३॥
वैद्युतो जाठरश्चाग्नि रैन्धनस्तेजसां पतिः।
धर्मध्वजो वेदकर्ता वेदांगो वेदवाहनः॥४॥
कृतं त्रेता द्वापरश्च कलिः सर्वमलाश्रयः।
कला काष्ठा मुहूर्त्ताश्च क्षपा यामस्तथा क्षणः॥५॥
संवत्सरकरोऽश्वत्थः कालचक्रो विभावसुः।
पुरुषः शाश्वतो योगी व्यक्ताव्यक्तः सनातनः॥६॥
कालाध्यक्षः प्रजाध्यक्षो विश्वकर्मा तमोनुदः।
वरुणः सागरोंऽशश्च जीमूतो जीवनोऽरिहा॥७॥
भूताश्रयो भूतपतिः सर्वलोकनमस्कृतः।
स्रष्टा संवर्तको वह्निः सर्वस्यादिरलोलुपः॥८॥
अनन्तः कपिलो भानुः कामदः सर्वतोमुखः।
जयो विशालो वरदः सर्वधातुनिषेचिता॥९॥
मनः सुपर्णो भूतादिः शीघ्रगः प्राणधारकः।
धन्वन्तरिर्धूमकेतुरादिदेवो दितेः सुतः॥१०॥
द्वादशात्मारविन्दाक्षः पिता माता पितामहः।
स्वर्गद्वारं प्रजाद्वारं मोक्षद्वारं त्रिविष्टपम्॥११॥
देहकर्ता प्रशान्तात्मा विश्वात्मा विश्वतोमुखः।
चराचरात्मा सूक्ष्मात्मा मैत्रेयः करुणान्वितः॥१२॥
भविष्यपुराणोक्त आदित्याष्टोत्तरनामस्तोत्रम्
सूर्य अष्टोत्तरशतनाम का एक अन्य प्रकार भविष्यपुराण में प्राप्त होता है। भविष्यपुराणोक्त आदित्य अष्टोत्तरशतनाम स्तोत्र का पाठ, नाम से पूजा और हवन तीनों किया जाता है। नीचे भविष्यपुराणोक्त आदित्य अष्टोत्तरशतनाम स्तोत्र भी दिया जा रहा है :
॥ श्रीगणेशाय नमः ॥
नवग्रहाणां सर्वेषां सूर्यादीनां पृथक् पृथक् ।
पीडा च दुःसहा राजञ्जायते सततं नृणाम् ॥१॥
पीडानाशाय राजेन्द्र नामानि शृणु भास्वतः ।
सूर्यादीनां च सर्वेषां पीडा नश्यति शृण्वतः ॥२॥
ॐ आदित्य सविता सूर्यः पूषार्कः शीघ्रगो रविः ।
भगस्त्वष्टाऽर्यमा हंसो हेलिस्तेजो निधिर्हरिः ॥३॥
दिननाथो दिनकरः सप्तसप्तिः प्रभाकरः ।
विभावसुर्वेदकर्ता वेदाङ्गो वेदवाहनः ॥४॥
हरिदश्वः कालवक्त्रः कर्मसाक्षी जगत्पतिः ।
पद्मिनीबोधको भानुर्भास्करः करुणाकरः ॥५॥
द्वादशात्मा विश्वकर्मा लोहिताङ्गस्तमोनुदः ।
जगन्नाथोऽरविन्दाक्षः कालात्मा कश्यपात्मजः ॥६॥
भूताश्रयो ग्रहपतिः सर्वलोकनमस्कृतः ।
जपाकुसुमसङ्काशो भास्वानदितिनन्दनः ॥७॥
ध्वान्तेभसिंहः सर्वात्मा लोकनेत्रो विकर्तनः ।
मार्तण्डो मिहिरः सूरस्तपनो लोकतापनः ॥८॥
जगत्कर्ता जगत्साक्षी शनैश्चरपिता जयः ।
सहस्ररश्मिस्तरणिर्भगवान्भक्तवत्सलः ॥९॥
विवस्वानादिदेवश्च देवदेवो दिवाकरः ।
धन्वन्तरिर्व्याधिहर्ता दद्रुकुष्ठविनाशनः ॥१०॥
चराचरात्मा मैत्रेयोऽमितो विष्णुर्विकर्तनः ।
लोकशोकापहर्ता च कमलाकर आत्मभूः ॥११॥
नारायणो महादेवो रुद्रः पुरुष ईश्वरः ।
जीवात्मा परमात्मा च सूक्ष्मात्मा सर्वतोमुखः ॥१२॥
इन्द्रोऽनलो यमश्चैव नैर्ऋतो वरुणोऽनिलः ।
श्रीदः ईशान इन्दुश्च भौमः सौम्यो गुरुः कविः ॥१३॥
शौरिर्विधुन्तुदः केतुः कालः कालात्मको विभुः ।
सर्वदेवमयो देवः कृष्णः कामप्रदायकः ॥१४॥
य एतैर्नामभिर्मर्त्यो भक्त्या स्तौति दिवाकरम् ।
सर्वपापविनिर्मुक्तः सर्वरोगविवर्जितः ॥१५॥
पुत्रवान् धनवान् श्रीमाञ्जायते स न संशयः ।
रविवारे पठेद्यस्तु नामान्येतानि भास्वतः ॥१६॥
पीडाशान्तिर्भवेत्तस्य ग्रहाणां च विशेषतः ।
सद्यः सुखमवाप्नोति चायुर्दीर्घं च नीरुजम् ॥१७॥
॥ इति श्रीभविष्यपुराणे आदित्यस्तोत्रं सम्पूर्णम् ॥
कर्मकांड विधि में शास्त्रोक्त प्रमाणों के साथ प्रामाणिक चर्चा की जाती है एवं कई महत्वपूर्ण विषयों की चर्चा पूर्व भी की जा चुकी है। तथापि सनातनद्रोही उचित तथ्य को जनसामान्य तक पहुंचने में अवरोध उत्पन्न करते हैं। एक बड़ा वैश्विक समूह है जो सनातन विरोध की बातों को प्रचारित करता है। गूगल भी उसी समूह का सहयोग करते पाया जा रहा है अतः जनसामान्य तक उचित बातों को जनसामान्य ही पहुंचा सकता है इसके लिये आपको भी अधिकतम लोगों से साझा करने की आवश्यकता है।
आगे भविष्यपुराणोक्त आदित्य अष्टोत्तर शतमान को पृथक-पृथक करके दिया गया है आगे पढ़ें :