महिषासुर मर्दिनी स्तोत्र एक बहुत ही सुंदर स्तोत्र है जिसे भगवती की अर्चना में लयपूर्वक पढ़ा जाता है। इसका प्रयोग पुष्पांजलि हेतु भी किया जा सकता है। महिषासुर मर्दिनी स्तोत्र में कुल २२ श्लोक मिलते हैं। इस आलेख में महिषासुर मर्दिनी स्तोत्र हिंदी अर्थ सहित दिया गया है। इसके साथ ही भगवती के अनेकों अन्य स्तोत्रों के अनुगमन पथ भी दिये गये हैं जिसका अनुसरण करते हुये अन्य स्तोत्रों का भी अवलोकन करना सरल हो जाता है।
महिषासुर मर्दिनी स्तोत्र हिंदी अर्थ सहित
अयि गिरिनन्दिनि नन्दितमेदिनि विश्वविनोदिनि नन्दिनुते
गिरिवरविन्ध्यशिरोऽधिनिवासिनि विष्णुविलासिनि जिष्णुनुते ।
भगवति हे शितिकण्ठकुटुम्बिनि भूरिकुटुम्बिनि भूतिकृते
जय जय हे महिषासुरमर्दिनि रम्यकपर्दिनि शैलसुते ॥१॥
अर्थ : पर्वतराज हिमालय की कन्या, पृथ्वी को आनन्दित करनेवाली, संसार को हर्षित रखनेवाली, नन्दिगण से नमस्कार की जानेवाली, गिरिश्रेष्ठ विन्ध्याचल के शिखर पर निवास करनेवाली, भगवान विष्णु को प्रसन्न रखनेवाली, इन्द्र से नमस्कृत होनेवाली, भगवान शिव की भार्या के रूप में प्रतिष्ठित, विशाल कुटुम्बवाली और ऐश्वर्य प्रदान करनेवाली हे भगवान शिव की प्रिय पत्नी महिषासुर मर्दिनी पार्वती ! आपकी जय हो, जय हो।
सुरवरवर्षिणि दुर्धरधर्षिणि दुर्मुखमर्षिणि हर्षरते,
त्रिभुवनपोषिणि शंकर तोषिणि किल्बिषमोषिणि घोषरते।
दनुज निरोषिणि दितिसुत रोषिणि दुर्मद शोषिणि सिन्धुसुते,
जय जय हे श्री महिषासुरमर्दिनि रम्यकपर्दिनि शैलसुते॥२॥
अर्थ : देवराज इन्द्र को समृद्धिशाली बनानेवाली, दुर्धर तथा दुर्मुख नामक दैत्यों का विनाश करनेवाली, सर्वदा हर्षित रहनेवाली, तीनों लोकों का पालन-पोषण करनेवाली, भगवान शिव को संतुष्ट रखनेवाली, पाप को दूर करनेवाली, घोर गर्जन करनेवाली, दैत्यों पर भीषण कोप करनेवाली, मदान्धों के मद का हरण कर लेनेवाली, सदाचार से रहित मुनिजनों पर क्रोध करनेवाली और समुद्र की कन्या महालक्ष्मी के रूप में प्रतिष्ठित हे भगवान शिव की प्रिय पत्नी महिषासुर मर्दिनी पार्वती ! आपकी जय हो, जय हो।
अयि जगदम्ब कदम्बवनप्रियवासिनि तोषिणि हासरते
शिखरिशिरोमणितुङ्गहिमालयशृङ्गनिजालयमध्यगते ।
मधुमधुरे मधुकैटभगञ्जिनि महिषविदारिणि रासरते
जय जय हे महिषासुरमर्दिनि रम्यकपर्दिनि शैलसुते ॥३॥
अर्थ : जगत की मातास्वरूपिणी, कदम्ब वृक्ष के वन में प्रेमपूर्वक निवास करनेवाली, सदा संतुष्ट रहनेवाली, हास-परिहास में सदा रत रहनेवाली, पर्वतों में श्रेष्ठ ऊँचे हिमालय की चोटी पर अपने भवन में विराजमान रहनेवाली, मधु से भी अधिक मधुर स्वभाववाली, मधु-कैटभ का संहार करनेवाली, महिष को विदीर्ण कर डालनेवाली और रासक्रीडा में मग्न रहनेवाली हे भगवान शिव की प्रिय पत्नी महिषासुर मर्दिनी पार्वती ! आपकी जय हो, जय हो।
अयि निजहुंकृतिमात्र निराकृत धूम्रविलोचन धूम्रशते
समरविशोषित रोषित शोणित बीजसमुद्भव बीजलते ।
शिव शिव शुम्भ निशुम्भ महाहव तर्पित भूतपिशाचरते
जय जय हे महिषासुरमर्दिनि रम्यकपर्दिनि शैलसुते ॥४॥
अर्थ : अपने हुंकार मात्र से धूम्रलोचन तथा धूम्र आदि सैकड़ों असुरों को भस्म कर डालनेवाली, युद्धभूमि में कुपित रक्तबीज के रक्त से उत्पन्न हुए अन्य रक्तबीज समूहों का रक्त पी जानेवाली और शुम्भ-निशुम्भ नामक दैत्यों के महायुद्ध से तृप्त किये गये मंगलकारी शिव के भूत-पिशाचों के प्रति अनुराग रखनेवाली हे भगवान शिव की प्रिय पत्नी महिषासुर मर्दिनी पार्वती ! आपकी जय हो, जय हो।
अयि शतखण्ड विखण्डितरुण्ड वितुण्डितशुण्ड गजाधिपते
निजभुजदण्ड निपातितचण्ड विपाटितमुण्ड भटाधिपते ।
रिपुगजगण्ड विदारणचण्ड पराक्रमशौण्ड मृगाधिपते
जय जय हे महिषासुरमर्दिनि रम्यकपर्दिनि शैलसुते ॥५॥
अर्थ : गजाधिपति के बिना सूँड़ के धड़ को काट-काट कर सैकड़ों टुकड़े कर देनेवाली, सेनाधिपति चण्ड-मुण्ड नामक दैत्यों को अपने भुजदण्ड से मार-मार कर विदीर्ण कर देनेवाली, शत्रुओं के हाथियों के गण्डस्थल को भग्न करने में उत्कट पराक्रम से सम्पन्न कुशल सिंह पर आरूढ़ होनेवाली हे भगवान शिव की प्रिय पत्नी महिषासुर मर्दिनी पार्वती ! आपकी जय हो, जय हो।
धनुरनुषङ्ग रणक्षणसङ्ग परिस्फुरदङ्ग नटत्कटके
कनकपिशङ्ग पृषत्कनिषङ्ग रसद्भटशृङ्ग हताबटुके ।
हतचतुरङ्ग बलक्षितिरङ्ग घटद्बहुरङ्ग रटद्बटुके
जय जय हे महिषासुरमर्दिनि रम्यकपर्दिनि शैलसुते ॥६॥
अर्थ : समरभूमि में धनुष धारण कर अपने शरीर को केवल हिलाने मात्र से शत्रुदल को कम्पित कर देनेवाली, स्वर्ण के समान पीले रंग के तीर और तरकश से सज्जित, भीषण योद्धाओं के सिर काटनेवाली और (हाथी, घोड़ा, रथ, पैदल) चारों प्रकार की सेनाओं का संहार करके रणभूमि में अनेक प्रकार की शब्दध्वनि करनेवाले बटुकों को उत्पन्न करनेवाली हे भगवान शिव की प्रिय पत्नी महिषासुर मर्दिनी पार्वती ! आपकी जय हो, जय हो।
अयि रणदुर्मद शत्रुवधाद्धुर दुर्धरनिर्भर शक्तिभृते
चतुरविचार धुरीणमहाशय दूतकृत प्रमथाधिपते ।
दुरित दुरीह दुराशय दुर्मति दानवदूत दुरन्तगते
जय जय हे महिषासुरमर्दिनि रम्यकपर्दिनि शैलसुते ॥७॥
अर्थ : रणभूमि में मदोन्मत्त शत्रुओं के वध से बढ़ी हुई अदम्य तथा पूर्ण शक्ति धारण करनेवाली, चातुर्यपूर्ण विचारवाले लोगों में श्रेष्ठ और गम्भीर कल्पनावाले प्रमथाधिपति भगवान शंकर को दूत बनानेवाली, दूषित कामनाओं तथा कुत्सित विचारोंवाले दुर्बुद्धि दानवों के दूतों से न जानी जा सकनेवाली हे भगवान शिव की प्रिय पत्नी महिषासुर मर्दिनी पार्वती ! आपकी जय हो, जय हो।
अयि शरणागत वैरिवधूजन वीर वराभयदायिकरे
त्रिभुवनमस्तक शूलविरोधि शिरोधि कृतामल शूलकरे ।
दुमिदुमितामर दुन्दुभिनाद मुहुर्मुखरीकृत दिङ्निकरे
जय जय हे महिषासुरमर्दिनि रम्यकपर्दिनि शैलसुते ॥८॥
अर्थ : शरणागत शत्रुओं की स्त्रियों के वीर पतियों को अभय प्रदान करनेवाले हाथ से शोभा पानेवाली, तीनों लोकों को पीड़ित करनेवाले दैत्य शत्रुओं के मस्तक पर प्रहार करने योग्य तेजोमय त्रिशूल हाथ में धारण करनेवाली तथा देवताओं की दुन्दुभि से निकलने वाली ‘दुम्-दुम्’ ध्वनि से समस्त दिशाओं को बार-बार गुंजित करनेवाली हे भगवान शिव की प्रिय पत्नी महिषासुर मर्दिनी पार्वती ! आपकी जय हो, जय हो।
सुरललना ततथेयित थेयित थाभिनयोत्तर नृत्यरते
कृतकुकुथा कुकुथोदि डदाडिक ताल कुतूहल गानरते ।
धुधुकुट धूधुट धिन्धिमितध्वनि घोर मृदङ्ग निनादरते
जय जय हे महिषासुरमर्दिनि रम्यकपर्दिनि शैलसुते ॥९॥
अर्थ : देवांगनाओं के तत-था-थेयि-थेयि आदि शब्दों से युक्त भावमय नृत्य में मग्न रहनेवाली, कुकुथा आदि विभिन्न प्रकार की मात्राओं वाले तालों से युक्त आश्चर्यमय गीतों को सुनने में लीन रहनेवाली और मृदंग की धुधुकुट-धूधुट आदि गम्भीर ध्वनि को सुनने में तत्पर रहनेवाली हे भगवान शिव की प्रिय पत्नी महिषासुर मर्दिनी पार्वती ! आपकी जय हो, जय हो।
जय जय जाप्यजये जयशब्द परस्तुति तत्पर विश्वनुते
झणझण झिंझिम झिंकृत नूपुर शिञ्जित मोहित भूतपते ।
नटित नटार्ध नटी नटनायक नाट ननाटित नाट्यरते
जय जय हे महिषासुरमर्दिनि रम्यकपर्दिनि शैलसुते ॥१०॥
अर्थ : हे जपनीय मन्त्र की विजयशक्ति स्वरूपिणि ! आपकी बार-बार जय हो। जय-जयकार शब्दसहित स्तुति करने में तत्पर समस्त संसार के लोगों से नमस्कृत होनेवाली, अपने नूपुर के झण-झण, झिंझिम शब्दों से भूतनाथ भगवान शंकर को मोहित करनेवाली और नटी-नटों के नायक प्रसिद्ध नट अर्धनारीश्वर शंकर के नृत्य से सुशोभित नाट्य देखने में तल्लीन रहनेवाली हे भगवान शिव की प्रिय पत्नी महिषासुर मर्दिनी पार्वती ! आपकी जय हो, जय हो।
अयि सुमनःसुमनःसुमनःसुमनःसुमनोरम कान्तियुते
श्रितरजनीरजनीरजनीरजनीरजनीकरवक्त्रभृते ।
सुनयनविभ्रमरभ्रमरभ्रमरभ्रमरभ्रमराभिदृते
जय जय हे महिषासुरमर्दिनि रम्यकपर्दिनि शैलसुते ॥११॥
अर्थ : प्रसन्नचित्त तथा संतुष्ट देवताओं के द्वारा अर्पित किये गये पुष्पों से अत्यन्त मनोरम कान्ति धारण करनेवाली, निशाचरों को वर प्रदान करनेवाले शिवजी की भार्या, रात्रिसूक्त से प्रसन्न होनेवाली, चन्द्रमा के समान मुखमण्डलवाली और सुन्दर नेत्रवाले कस्तूरी मृगों में व्याकुलता उत्पन्न करने वाले भौंरों से तथा भ्रान्ति को दूर करने वाले ज्ञानियों से अनुसरण की जानेवाली हे भगवान शिव की प्रिय पत्नी महिषासुर मर्दिनी पार्वती ! आपकी जय हो, जय हो।
महितमहाहवमल्लमतल्लिकवल्लितरल्लितभल्लिरते
विरचितवल्लिकपालिकपल्लिकझिल्लिकभिल्लिकवर्गवृते ।
श्रुतकृतफुल्लसमुल्लसितारूणतल्लजपल्लवसल्ललिते
जय जय हे महिषासुरमर्दिनि रम्यकपर्दिनि शैलसुते ॥१२॥
अर्थ : महनीय महायुद्ध के श्रेष्ठ वीरों के द्वारा घुमावदार तथा कलापूर्ण ढंग से चलाये गये भालों के युद्ध के निरीक्षण में चित्त लगानेवाली, कृत्रिम लतागृह का निर्माण कर उसका पालन करनेवाली स्त्रियों की बस्ती में ‘झिल्लिक’ नामक वाद्यविशेष बजानेवाली भिल्लिनियों के समूह से सेवित होनेवाली और कान पर रखे हुए विकसित सुन्दर रक्तवर्ण तथा श्रेष्ठ कोमल पत्तों से सुशोभित होनेवाली हे भगवान शिव की प्रिय पत्नी महिषासुर मर्दिनी पार्वती ! आपकी जय हो, जय हो।
अयि सुदतीजन लालसमानसमोहनमन्मथराजसुते
अविरलगण्डगलन्मदमेदुरमत्तमत्तङ्गजराजगते ।
त्रिभुवनभूषणभूतकलानिधिरूपपयोनिधिराजसुते
जय जय हे महिषासुरमर्दिनि रम्यकपर्दिनि शैलसुते ॥१३॥
अर्थ : सुन्दर दंतपंक्ति वाली स्त्रियों के उत्कण्ठापूर्ण मन को मुग्ध कर देनेवाले कामदेव को जीवन प्रदान करनेवाली, निरन्तर मद चूते हुए गण्डस्थल से युक्त मदोन्मत्त गजराज के सदृश मन्थर गतिवाली और तीनों लोकों के आभूषण स्वरुप चन्द्रमा के समान कान्तियुक्त सागर कन्या के रूप में प्रतिष्ठित हे भगवान शिव की प्रिय पत्नी महिषासुर मर्दिनी पार्वती ! आपकी जय हो, जय हो।
कमलदलामलकोमलकान्तिकलाकलितामलभालतले
सकलविलासकलानिलयक्रमकेलिचलत्कलहंसकुले ।
अलिकुलसङ्कुलकुन्तलमण्डलमौलिमिलद्बकुलालिकुले
जय जय हे महिषासुरमर्दिनि रम्यकपर्दिनि शैलसुते ॥१४॥
अर्थ : कमलदल के सदृश वक्र, निर्मल और कोमल कान्ति से परिपूर्ण एक कलावाले चन्द्रमा से सुशोभित उज्ज्वल ललाट पटलवाली, सम्पूर्ण विलासों और कलाओं की आश्रयभूत, मन्दगति तथा क्रीड़ा से सम्पन्न राजहंसों के समुदाय से सुशोभित होनेवाली और भौंरों के सदृश काले तथा सघन केशपाश की चोटी पर शोभायमान मौलश्री पुष्पों की सुगन्ध से भ्रमर समूहों को आकृष्ट करनेवाली हे भगवान शिव की प्रिय पत्नी महिषासुर मर्दिनी पार्वती ! आपकी जय हो, जय हो।
करमुरलीरव वर्जित कूजित लज्जित कोकिलमञ्जुमते
मिलितमिलिन्द मनोहर गुञ्जित रञ्जितशैल निकुञ्जगते ।
निजगण भूतमहा शबरीगण रङ्गण सम्भृत केलिरते
जय जय हे महिषासुरमर्दिनि रम्यकपर्दिनि शैलसुते ॥१५॥
अर्थ : आपके हाथ में सुशोभित मुरली की ध्वनि सुनकर बोलना बंद करके लाज से भरी हुई कोकिल के प्रति प्रिय भावना रखनेवाली, भौंरों के समूहों की मनोहर गूँज से सुशोभित पर्वत प्रदेश के निकुंजों में विहार करनेवाली और अपने भूत तथा भिल्लिनी आदि गणों के नृत्य से युक्त क्रीड़ाओं को देखने में सदा तल्लीन रहनेवाली हे भगवान शिव की प्रिय पत्नी महिषासुर मर्दिनी पार्वती ! आपकी जय हो, जय हो।
कटितट पीतदुकूल विचित्रमयूख तिरस्कृत चण्डरुचे
जितकनकाचल मौलि मदोर्जित गर्जित कुञ्जर कुम्भकुचे ।
प्रणत सुराऽसुर मौलि मणिस्फुर दंशुलसन्नख चन्द्ररुचे
जय जय हे महिषासुरमर्दिनि रम्यकपर्दिनि शैलसुते ॥१६॥
अर्थ : अपने कटिप्रदेश पर सुशोभित पीले रंग के रेशमी वस्त्र की विचित्र कान्ति से सूर्य की प्रभा को तिरस्कृत कर देनेवाली, सुमेरु पर्वत के शिखर पर मदोन्मत्त गर्जना करनेवाले हाथियों के गण्डस्थल के समान वक्षस्थल वाली और आपको प्रणाम करनेवाले देवताओं तथा दैत्यों के मस्तक पर स्थित मणियों से निकली हुई किरणों से प्रकाशित चरणनखों में चन्द्रमा सदृश कान्ति धारण करनेवाली हे भगवान शिव की प्रिय पत्नी महिषासुर मर्दिनी पार्वती ! आपकी जय हो, जय हो।
विजित सहस्रकरैकसहस्रकरैक सहस्रकरैकनुते
कृतसुरतारकसङ्गरतारकसङ्गरतारकसूनुनुते ।
सुरथसमाधिसमानसमाधिसमानसमाधिसुजाप्यरते
जय जय हे महिषासुरमर्दिनि रम्यकपर्दिनि शैलसुते ॥१७॥
अर्थ : हजारों हस्त नक्षत्रों को जीतनेवाले और सहस्र किरणोंवाले भगवान सूर्य की एकमात्र नमस्करणीय, देवताओं के उद्धार हेतु युद्ध करनेवाले, तारकासुर से संग्राम करनेवाले तथा संसार सागर से पार करनेवाले शिवजी के पुत्र कार्तिकेय से प्रणाम की जानेवाली और राजा सुरथ तथा समाधि नामक वैश्य की सविकल्प समाधि के समान समाधियों में सम्यक जपे जानेवाले मन्त्रों में प्रेम रखनेवाली हे भगवान शिव की प्रिय पत्नी महिषासुर मर्दिनी पार्वती ! आपकी जय हो, जय हो।
पदकमलं करुणानिलये वरिवस्यति योऽनुदिनं सुशिवे
अयि कमले कमलानिलये कमलानिलयः स कथं न भवेत् ।
तव पदमेव परं पदमस्त्विति शीलयतो मम किं न शिवे
जय जय हे महिषासुरमर्दिनि रम्यकपर्दिनि शैलसुते ॥१८॥
अर्थ : हे करुणामयी कल्याणमयी शिवे ! हे कमलवासिनी कमले ! जो मनुष्य प्रतिदिन आपके चरणकमल की उपासना करता है, उसे लक्ष्मी का आश्रय क्यों नहीं प्राप्त होगा। हे शिवे ! आपका चरण ही परमपद है, ऐसी भावना रखनेवाले मुझ भक्त को क्या-क्या सुलभ नहीं हो जायेगा अर्थात सब कुछ प्राप्त हो जायेगा। हे भगवान शिव की प्रिय पत्नी महिषासुर मर्दिनी पार्वती ! आपकी जय हो, जय हो।
कनकलसत्कलशीकजलैरनुषिञ्चति तेऽङ्गणरङ्गभुवं
भजति स किं न शचीकुचकुम्भनटीपरिरम्भसुखानुभवम् ।
तव चरणं शरणं करवाणि सुवाणि पथं मम देहि शिवं
जय जय हे महिषासुरमर्दिनि रम्यकपर्दिनि शैलसुते ॥१९॥
अर्थ : स्वर्ण के समान चमकते घड़ों के जल से जो आपके प्रांगण की रंगभूमि को प्रक्षालित कर उसे स्वच्छ बनाता है, वह इन्द्राणी के समान विशाल वक्षस्थलों वाली सुन्दरियों का सान्निध्य सुख अवश्य ही प्राप्त करता है। हे सरस्वति ! मैं आपके चरणों को ही अपनी शरणस्थली बनाऊँ, मुझे कल्याणकारक मार्ग प्रदान करो। हे भगवान शिव की प्रिय पत्नी महिषासुर मर्दिनी पार्वती ! आपकी जय हो, जय हो।
तव विमलेन्दुकलं वदनेन्दुमलं कलयन्ननुकूलयते
किमु पुरुहूतपुरीन्दुमुखीसुमुखीभिरसौ विमुखीक्रियते ।
मम तु मतं शिवमानधने भवती कृपया किमु न क्रियते
जय जय हे महिषासुरमर्दिनि रम्यकपर्दिनि शैलसुते ॥२०॥
अर्थ : स्वच्छ चन्द्रमा के सदृश सुशोभित होनेवाले आपके मुखचन्द्र को निर्मल करके जो आपको प्रसन्न कर लेता है, क्या उसे देवराज इन्द्र की नगरी में रहनेवाली चन्द्रमुखी सुन्दरियाँ सुख से वंचित रख सकती हैं। भगवान शिव के सम्मान को अपना सर्वस्व समझनेवाली हे भगवति ! मेरा तो यह विश्वास है कि आपकी कृपा से क्या-क्या सिद्ध नहीं हो जाता। हे भगवान शिव की प्रिय पत्नी महिषासुर मर्दिनी पार्वती ! आपकी जय हो, जय हो।
अयि मयि दीनदयालुतया कृपयैव त्वया भवितव्यमुमे
अयि जगतो जननीति यथाऽसि मयाऽसि तथाऽनुमतासि रमे ।
यदुचितमत्र भवत्पुरगं कुरु शाम्भवि देवि दयां कुरु मे
जय जय हे महिषासुरमर्दिनि रम्यकपर्दिनि शैलसुते ॥२१॥
अर्थ : हे उमे ! आप सदा दीन-दुःखियों पर दया का भाव रखती हैं, अतः आप मुझपर कृपालु बनी रहें। हे महालक्ष्मी ! जैसे आप सारे संसार की माता हैं, वैसे ही मैं आपको अपनी भी माता समझता हूँ। हे शिवे ! यदि आपको उचित प्रतीत होता हो तो मुझे अपने लोक में जाने की योग्यता प्रदान करें। हे देवि ! मुझपर दया करें। हे भगवान शिव की प्रिय पत्नी महिषासुर मर्दिनी पार्वती ! आपकी जय हो, जय हो।
स्तुतिमिमां स्तिमितः सुसमाधिना नियमतो यमतोऽनुदिनं पठेत् ।
परमया रमया स निषेव्यते परिजनोऽरिजनोऽपि च तं भजेत् ॥२२॥
अर्थ : जो मनुष्य शान्तभाव से पूर्णरूप से मन को एकाग्र करके तथा इन्द्रियों पर नियन्त्रण कर नियमपूर्वक प्रतिदिन इस स्तोत्र का पाठ करता है, भगवती महालक्ष्मी उसके यहाँ सदा वास करती हैं और उसके बन्धु-बान्धव तथा शत्रुजन भी सदा उसकी सेवा में तत्पर रहते हैं।
॥ इति महिषासुर मर्दिनी स्तोत्र सम्पूर्णं ॥
F & Q :
प्रश्न : महिषासुर मर्दिनी में कितने श्लोक हैं?
उत्तर : महिषासुर मर्दिनी स्तोत्र में २१ श्लोक हैं और १ फलश्रुति को मिलाकर कुल २२ हो जाता है।
प्रश्न : महिषासुर की माता कौन थी?
उत्तर : महिषासुर वास्तव में एक महिषीपुत्र था। महिषासुर के जन्म की भी एक विचित्र कथा है।
प्रश्न : मां दुर्गा किसकी बेटी थी?
उत्तर : मां दुर्गा किसी की बेटी नहीं थी। महिषासुर वध करने के लिये सभी देवताओं के तेज (शक्ति) एकत्रित होने पर माँ दुर्गा प्रकट हुयी थी।
प्रश्न : महिषासुर कौन जाति था?
उत्तर : महिषासुर वास्तव में दानव था। वर्त्तमान के जातिवाद की राजनीति में उसकी भी जाति ढूंढी जा रही है और कुछ लोग तो उसे अपनी जाति का बताते भी हैं। ऐसे में उनके लिये सोचने की बात ये है कि जो नेता/दल किसी जाति को महिषासुर से जोड़ रहे हैं क्या वो उस जाति को दानव नहीं सिद्ध करते हैं।
प्रश्न : महिषासुर की पूजा कौन करता है?
उत्तर : महिषासुर की पूजा सभी शक्ति उपासक करते हैं। माता दुर्गा ने उसे भी अपने साथ पूजित होने का वर दिया था जिस कारण जहां भी माता दुर्गा की प्रतिमा बनायी जाती है महिषासुर की भी प्रतिमा बनायी जाती है और महिषासुर की भी पूजा की जाती है।
प्रश्न : महिषासुर मर्दिनी स्तोत्रम दुर्गा सप्तशती में है?
उत्तर : नहीं, महिषासुर मर्दिनी स्तोत्र दुर्गा सप्तशती का अङ्ग नहीं है। किन्तु भगवती का एक महत्वपूर्ण स्तोत्र होने के कारण कुछ प्रकाशनों से प्रकाशित होने वाली दुर्गा सप्तशती में जोड़ी गयी है।
॥ ॐ शान्तिः शान्तिः शान्तिः ॥ सुशांतिर्भवतु ॥ सर्वारिष्ट शान्तिर्भवतु ॥
आगे सम्पूर्ण दुर्गा सप्तशती के अनुगमन कड़ी दिये गये हैं जहां से अनुसरण पूर्वक कोई भी अध्याय पढ़ सकते है :
कर्मकांड विधि में शास्त्रोक्त प्रमाणों के साथ प्रामाणिक चर्चा की जाती है एवं कई महत्वपूर्ण विषयों की चर्चा पूर्व भी की जा चुकी है। तथापि सनातनद्रोही उचित तथ्य को जनसामान्य तक पहुंचने में अवरोध उत्पन्न करते हैं। एक बड़ा वैश्विक समूह है जो सनातन विरोध की बातों को प्रचारित करता है। गूगल भी उसी समूह का सहयोग करते पाया जा रहा है अतः जनसामान्य तक उचित बातों को जनसामान्य ही पहुंचा सकता है इसके लिये आपको भी अधिकतम लोगों से साझा करने की आवश्यकता है।
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