पशुपति अर्थात पशुओं के पति या स्वामी। अब प्रश्न है पशु कौन तो इसका उत्तर है समस्त जीव पशु है। इस कारण सभी जीवों के जो स्वामी हैं वो पशुपति हैं। मनुष्य स्वयं को पशु से भिन्न भी मानता है और यदि मनुष्य को पशु न माना जाय तो वह अनाथ सिद्ध हो जायेगा। पशुपति स्तोत्र एक कल्याणकारी स्तोत्र है जिसमें “सर्वे भवन्तु सुखिनः” का भाव भी मिलता है। यहां कल्याणकारी (pashupati stotra) पशुपति स्तोत्र हिंदी अर्थ सही दिया गया है।
कल्याणकारी पशुपति स्तोत्र हिंदी अर्थ सहित – pashupati stotra
स पातु वो यस्य जटाकलापे
स्थितः शशाङ्कः स्फुटहारगौरः ।
नीलोत्पलानामिव नालपुञ्जे
निद्रायमाणः शरदीव हंसः ॥१॥
जगत्सिसृक्षाप्रलयक्रियाविधौ
प्रयलमुन्मेषनिमेषविभ्नमम् ।
वदन्ति यस्येक्षणलोलपक्ष्मणां
पराय तस्मै परमेष्ठिने नमः ॥२॥
व्योम्नीव नीरदभरः सरसीव वीचि-
व्यूहः सहस्रमहसीव सुधांशुधाम ।
यस्मिन्निदं जगदुदेति च लीयते च
तच्छाम्भवं भवतु वैभवमृद्धये वः ॥३॥
यः कन्दुकैरिव पुरन्दरपद्मसदा-
पद्यापतिप्रभृतिभिः प्रभुरप्रमेयः ।
खेलत्यलङ्घ्यमहिमा स हिमाद्रिकन्या-
कान्तः कृतान्तदलनो गलयत्वघं वः ॥४॥
दिश्यात् स शीतकिरणाभरणः शिवं वो
यस्योत्तमाङ्गभुवि विस्फुरदुर्मिपक्षा ।
हंसीव निर्मलशशाङ्ककलामृणाल-
कन्दार्थनी सुरसरिन्नभतः पपात ॥५॥
॥ इति पशुपतिस्तोत्रं सम्पूर्णम् ॥
पशुपति स्तोत्र हिंदी अर्थ – pashupati stotra in hindi
जिनके जटाजूट में स्थित गौरवर्ण का चन्द्रमा जो शरद्-ऋतुमें नील कमल के नालों में निद्रायमाण हंस-सा दीख रहा है, ऐसे चन्द्रभूषण भगवान पशुपति सबकी रक्षा करें ॥१॥
जिन भगवान पशुपतिके चंचल नेत्रों के पलकों का उन्मेष (खोलना) , निमेष (बंद करना) एवं विभ्रम (घूमना) संसारकी सृष्टि, पालन तथा संहार की क्रियाओं का प्रयत्न कहा जाता है, उन परात्पर परमेष्ठी भगवान पशुपतिको नमस्कार है ॥२॥
जिनके भीतर यह जगत् उसी प्रकार प्रकट और विलीन होता रहता है, जिस प्रकार आकाश में मेघपुंज, तालाब में तरंगसमूह और अनन्त दीप्तिवाले सूर्यमण्डल में चन्द्रमा की किरणें, ऐसे भगवान पशुपति शंकर आप सबको सुख-समृद्धि प्रदान करें ॥३॥
अप्रमेय एवं अनतिक्रमणीय महिमावाले तथा कृतान्त (यमराज) का दलन करनेवाले, इन्द्र, ब्रह्मा और विष्णु आदि के साथ क्रीड़ा-कन्दुक बनकर संसार में क्रीड़ा करने वाले पार्वतीपति भगवान पशुपति सबके पाप को नष्ट करें ॥४॥
जिन भगवान शंकरके सिर पर अपनी लहरों के साथ लहराती हुई गंगा आकाश से इस प्रकार अवतरित हो रही हैं, जैसे चन्द्रमा को निर्मल मृणालकन्द समझकर उसे पानेकी इच्छा करती हुई और अपने पंखों को हिलाती-डुलाती हंसी आकाश से सरोवर में उतर रही हो । ऐसे शीतकिरण चन्द्रमा को आभूषणरूप में धारण करनेवाले भगवान पशुपति सबका कल्याण करें ॥५॥
कर्मकांड विधि में शास्त्रोक्त प्रमाणों के साथ प्रामाणिक चर्चा की जाती है एवं कई महत्वपूर्ण विषयों की चर्चा पूर्व भी की जा चुकी है। तथापि सनातनद्रोही उचित तथ्य को जनसामान्य तक पहुंचने में अवरोध उत्पन्न करते हैं। एक बड़ा वैश्विक समूह है जो सनातन विरोध की बातों को प्रचारित करता है। गूगल भी उसी समूह का सहयोग करते पाया जा रहा है अतः जनसामान्य तक उचित बातों को जनसामान्य ही पहुंचा सकता है इसके लिये आपको भी अधिकतम लोगों से साझा करने की आवश्यकता है।