जानिये भगवान सूर्य पूजा की विधि और मंत्र – surya puja vidhi

जानिये भगवान सूर्य पूजा की विधि और मंत्र - surya puja vidhi

सूर्य मात्र एक तारा या ग्रह मात्र नहीं हैं अपितु सूर्य एक प्रमुख देवता हैं। त्रिदेवों की विशेषता तो है और सूर्य त्रिदेव में गण्य नहीं हैं किन्तु जब पंचदेवता की बात की जाती है तो उसमें भगवान सूर्य भी आते हैं। सूर्य को प्रत्यक्ष देवता भी कहा गया है जिनका हम प्रत्यक्ष दर्शन भी करते हैं। सूर्य को मुख्य रूप से आरोग्य प्रदायक कहा गया है और आरोग्य ही सबसे बड़ी संपत्ति है। इस आलेख में सूर्य पूजा करने की विधि बताई गयी है और सूर्य पूजा मंत्र दिया गया है।

जैसे भगवान विष्णु के उपासक वैष्णव, शिव के उपासक शैव, शक्ति के उपासक शाक्त, गणपति के उपासक गाणपत्य कहलाते हैं उसी प्रकार भगवान सूर्य के उपासक सौर कहलाते हैं। यदि भगवान सूर्य के उपासकों को छोड़ दें तो भगवान सूर्य की पूजा के विषय में दो महत्वपूर्ण तथ्य हैं जो विशेष रूप से विचार करने योग्य हैं – प्रथम वर्ष में सूर्य पूजा और व्रत की संख्या अत्यधिक होती है और द्वितीय अन्य देवताओं की भांति सूर्य पूजा विधि बहुतायत में प्राप्त नहीं होती।

वर्ष में सूर्य पूजा और व्रत की संख्या अत्यधिक होती है

यदि आपको ऐसा लगता हो कि सूर्य की पूजा के न्यून अवसर ही होते हैं तो इस भ्रम को मिटा लें क्योंकि वर्ष में भगवान सूर्य की पूजा के अनेकों अवसर आते हैं जिसमें से छठ व्रत, रविव्रत आदि को लोग जानते भी हैं। इसके साथ ही और अवसर भी होते हैं यथा रथसप्तमी, भानुसप्तमी, संक्रांति आदि। इसके साथ ही जब हम स्नान-संध्या-तर्पण-पंचदेवता पूजा आदि करते हैं तो भी अर्घ्यरूप से सूर्य पूजा अनिवार्य होता है। नित्यकर्म करने वाले जानते और समझते हैं कि भगवान सूर्य की कब-कब उपासना की जाती है। भले ही हम भुला रहे हों, न करते हों किन्तु वर्ष में सर्वाधिक पूजा के अवसर भगवान सूर्य का ही होता है।

सूर्य स्तोत्र संस्कृत - Surya Stotra

अन्य देवताओं की भांति सूर्य पूजा विधि बहुतायत में प्राप्त नहीं होती

वर्ष में सर्वाधिक पूजा के अवसर तो भगवान सूर्य के होते हैं किन्तु एक दूसरा तथ्य जो है वो यह भी है कि भगवान सूर्य के पूजा विधि बहुतायत में अनुपलब्ध है अथवा अन्य देवताओं के अनुपात में अत्यल्प ही देखने को मिलती है।

उपरोक्त कारण से सूर्य पूजा की विधि का महत्व और भी बढ़ जाता है। एक महत्वपूर्ण तथ्य यह भी है कि भगवान सूर्य की अराधना में दो विषय अधिक महत्वपूर्ण है अर्घ्य और नमस्कार। यदि भगवान सूर्य को अर्घ्य देकर नमस्कार कर लिया जाता है तो उसे भी संक्षिप्त पूजा ही समझें, और मुख्य रूप से अर्थात अधिकतम सूर्य की पूजा इसी प्रकार से की जाती है। किन्तु इसके साथ ही हमें भगवान सूर्य की उस पूजा विधि को भी समझना आवश्यक है जब विशेष पूजा करनी हो। आगे सूर्य पूजा की विधि और मंत्र दी गयी है।

सूर्य पूजा की विधि

भगवान सूर्य का व्रतादि करने पर उनकी पूजा का विधान जानना भी आवश्यक है तभी विधिपूर्वक पूजा की जा सकती है। सौरधर्म भगवान सूर्य की पूजा विधि इस प्रकार बताई गयी है –

अष्टपत्रं लिखेत् पद्मं विमले ताम्रभाजने । पूर्वपत्रे लिखेत् सूर्यमाग्नेय्यां तु रविं न्यसेत् ॥
दक्षिणस्यां विवस्वन्तं नैर्ऋत्यां तु भगं न्यसेत् ॥ वारुण्यां वरुणं विद्याद् वायव्यां मित्रमेव च ॥
(आदित्यं उत्तरे चैव ईशाने विष्णवे तथा।) मध्ये तु भास्करं न्यस्य क्रमेणैवं समर्चयेत् ॥

सर्वप्रथम सुन्दर-स्वच्छ ताम्रपात्र (थाली/छिपली आदि) में रक्तचंदन-कुंकुमादि से अष्टदल का निर्माण करे। फिर पूर्वादि क्रम से सभी दलों में क्रमशः भगवान सूर्य के विभिन्न नाम अंकित करे यथा :

पूर्व – सूर्य, अग्निकोण – रवि, दक्षिण – विवस्वान, नैर्ऋत्यकोण – भग, पश्चिम – वरुण, वायव्यकोण – मित्र, उत्तर – आदित्य, ईशानकोण – विष्णु और मध्य – भास्कर

सूर्य पूजा मंत्र – surya puja mantra

व्रती प्रातः काल नित्यकर्म (संध्या-वन्दन, पचदेवता-विष्णु पूजनादि) संपन्न कर ले। तत्पश्चात पूजा स्थान पर पूजा की सामग्री व्यवस्थित करके पवित्रीकरणादि करे। तत्पश्चात जलपूर्ण ताम्रपात्र लेकर भगवान सूर्य को अर्घ्य दे :

अर्घ्य मंत्र : इदं व्रतं मया देव गृहीतं पुरतस्तव । निर्विघ्नं सिद्धिमायातु भास्करस्य प्रसादतः ॥

तत्पश्चात त्रिकुशा-तिल-जल-गंधपुष्पाक्षत-पान-सुपारी-द्रव्यादि लेकर संकल्प करे :

संकल्प मंत्र : ॐ अद्यादि …………. मासि ………. पक्षे …..…….. तिथौ ….……… गोत्रस्य मम श्री ………… शर्मणः शारीरिक समस्तरोग निरसनपूर्वक सकलपुत्रपौत्रादि चिरजीवित्व सकल सुखसौभाग्य गोधनधान्यादि समृद्धिकामनया श्रीभास्करदेवपूजनमहं करिष्ये ॥

तत्पश्चात पूर्वोक्त विधि के अनुसार ताम्रपात्र में अष्टदल निर्माण करके भगवान सूर्य के विभिन्न नामों को लिखे। यदि प्रतिमा/आकृति हो तो मध्य में स्थापित करे अथवा पूगीफल देकर आवाहन करे :

प्रतिष्ठा : ॐ मनोजूतिर्जुषतामाज्यस्य बृहस्पतिर्यज्ञमिमं तन्नोत्वरिष्टं यज्ञ ᳪ समिमं दधातु॥ ॐ भूर्भुवः स्वः श्रीभास्करदेव साङ्गसपरिवार इहागच्छ इह तिष्ठ ॥

ध्यान : ॐ तेजोरूपं सहस्रांशुं मत्ताश्वरथवाहनम् । द्विभुजं वरदं पद्मलाञ्छनं सर्वकामदम् ॥ जपाकुसुमसंकाशं काश्यपेयं महाद्युतिम् । तमोऽरिं सर्वपापघ्नं प्रणतोऽस्मि दिवाकरम् ॥ ॐ नमो भगवते आदित्याय ॥

आवाहन : ॐ आगच्छ भगवन् सूर्य मण्डलेऽस्मिन् स्थिरो भव । यावत् पूजा समाप्येत तावत् त्वं सन्निधौ भव ॥ ॐ नमो भगवते आदित्याय ॥

आसन : ॐ हेमासनं महादिव्यं नानारत्नविभूषितम् । मद्दत्तं गृह्यतां देव दिवाकर नमोऽस्तु ते ॥ ॐ नमो भगवते आदित्याय ॥

पाद्य : ॐ गङ्गाजलं समानीतं परमं पावनं महत् । पाद्यं गृहाण देवेश घामरूप नमोऽस्तु ते ॥ ॐ नमो भगवते आदित्याय ॥

अर्घ्य : ॐ भो भो सूर्य महद्भूत ब्रह्मविष्णुशिवात्मक । अर्घ्यं भक्त्या मया दत्तं गृहाण परमेश्वर ॥ ॐ नमो भगवते आदित्याय ॥

आचमन : ॐ गङ्गादितीर्थजं तोयं जातीपुष्पैः सुवासितम् । ताम्रपात्रे स्थितं दिव्यं गृहाणाचमनीयकम् ॥ ॐ नमो भगवते आदित्याय॥

मलापकर्षस्नान : ॐ जाह्नवीजलमत्यन्तं पवित्रकरणं परम् । स्नानार्थं तु मयानीतं स्नानं करु जगत्पते ॥ ॐ नमो भगवते आदित्याय॥

पंचामृतस्नान : ॐ पयोदधिघृतैश्चैव शर्करामधुसंयुतैः । कृतं मया च स्नपनं भास्करः प्रीयतां मम ॥ ॐ नमो भगवते आदित्याय ॥

शुद्धोदकगन्धोदकः स्नान : ॐ गङ्गा गोदावरी चैव यमुना च सरस्वती । नर्मदा सिन्धुकावेरी ताभ्यः स्नानार्थमाहृतम् ॥ तोयमेतत् सुखस्पर्शं स्नानार्थं प्रतिगृह्यताम् ॥ ॐ नमो भगवते आदित्याय ॥ स्नानाङ्गमाचनीयम् (“ॐ भास्कराय नमः”)

वस्त्र : ॐ रक्तवस्त्रयुगं देव सूक्ष्मतन्तुविनिर्मितम् । शुद्धं चैव मया दत्तं गृहाण परमेश्वर ॥ ॐ नमो भगवते आदित्याय ॥ मूलेन वस्त्राङ्गमाचमनीयम् (ॐ नमो भगवते आदित्याय ॥)

यज्ञोपवीत : ॐ नमः कमलहस्ताय विश्वरूपाय ते नमः । उपवीतं मया दत्तं तद् गृहाण दिवाकर । ॐ नमो भगवते आदित्याय ॥ यज्ञोपवीताङ्गमाचमनीयम् (“ॐ भास्कराय नमः”)

गन्ध : ॐ कुंकुमागुरुकस्तूरी सुगन्धैश्चन्दनादिभिः । रक्तचन्दनसंयुक्तं गन्धं गृह्ण प्रभाकर ॥ ॐ नमो भगवते आदित्याय ॥

अक्षत : ॐ रक्तचन्दनसंमिश्रा अक्षताश्च सुशोभनाः। मया दत्तांस्तान् गृहाण वरदो भव भास्कर ॥ ॐ नमो भगवते आदित्याय ॥

पुष्प : ॐ जपाकदम्बकुसुम रक्तोत्पलयुतानि च । गृहाण देव पुष्पाणि सर्वकामप्रदो भव ॥ ॐ नमो भगवते आदित्याय ॥

तत्पश्चात अष्टदल में विभिन्न नामों से गन्धपुष्पाक्षतादि द्वारा पूजन करे :

  1. ॐ सूर्याय नमः ॥१॥
  2. ॐ रवये नमः ॥२॥
  3. ॐ विवस्वते नमः ॥३॥
  4. ॐ भगाय नमः ॥४॥
  5. ॐ वरुणाय नमः ॥५॥
  6. ॐ मित्राय नमः ॥६॥
  7. ॐ आदित्याय नमः ॥७॥
  8. ॐ विष्णवे नमः ॥८॥
  9. ॐ भास्कराय नमः ॥९॥
  10. ॐ अरुणमाठरपिङ्गलदण्डादिसर्वपरिवारदेवताभ्यो नमः ॥१०॥
  11. सर्वावरणसहिताय ॐ नमो भगवते आदित्याय ॥११॥

अङ्गपूजा

  1. ॐ मित्राय नमः पादौ पूजयामि ॥
  2. ॐ रवये नमः जंघे पूजयामि ॥
  3. ॐ सूर्याय नमः जानुनी पूजयामि ॥
  4. ॐ खगाय नमः ऊरू पूजयामि ॥
  5. ॐ पूष्णे नमः गुह्यं पूजयामि ॥
  6. ॐ हिरण्यगर्भाय नमः कटिं पूजयामि ॥
  7. ॐ मरीचये नमः नाभिं पूजयामि ॥
  8. ॐ आदित्याय नमः जठरं पूजयामि ॥
  9. ॐ सवित्रे नमः कण्ठं पूजयामि ॥
  10. ॐ अर्यम्णे नमः स्कन्धौ पूजयामि ॥
  11. ॐ प्रभाकराय नमः हस्तौ पूजयामि ॥
  12. ॐ अहस्कराय नमः मुखं पूजयामि ॥
  13. ॐ व्रध्नाय नमः नासिकां पूजयामि ॥
  14. ॐ जगदेकचक्षुषे नमः नेत्रे पूजयामि ॥
  15. ॐ सवित्रे नमः कर्णौ पूजयामि ॥
  16. ॐ त्रिगुणात्मधारिणे नमः ललाटं पूजयामि ॥
  17. ॐ विरञ्चिनारायणशंकरात्मने नमः शिरः पूजयामि ॥
  18. ॐ तिमिरनाशिने नमः सर्वाङ्गं पूजयामि ॥

धूप : ॐ दशाङ्गगुग्गुलोद्भूतः कालागुरुसमन्वितः । आघ्रेयः सर्वदेवानां धूपोऽयं प्रतिगृह्यताम् ॥ ॐ नमो भगवते आदित्याय ॥

दीप : ॐ कार्पासवर्तिसंयुक्तं गोघृतेन समन्वितम् । दीपं गृहाण देवेश त्रैलोक्यतिमिरापह ॥ ॐ नमो भगवते आदित्याय ॥

नैवेद्य : ॐ पायसं घृतसंयुक्तं नानापक्कान्नसंयुतम् । नैवेद्यं च मया दत्तं गृहाण सुरमुत्तम ॥ ॐ नमो भगवते आदित्याय ॥

आचमन : ॐ कर्पूरवासितं तोयं मन्दाकिन्याः समाहृतम् । आचम्यतां जगन्नाथ मया दत्तं हि भक्तितः ॥ ॐ नमो भगवते आदित्याय॥

तत्पश्चात ध्यान करके १०८ बार अथवा १० बार मूल मंत्र “ॐ भास्कराय नमः” का जप करके जप निवेदन करे : ॐ गुह्यातिगुह्यगोप्ता त्वं गृहाणास्मत्कृतं जपम् । सिद्धिर्भवतु मे देव त्वत्प्रसादान्महेश्वर ॥ इति समर्पयेत् ।

करोद्वर्तन : ॐ मलयाचलसंभूतं कर्पूरेण समन्वितम् । करोद्वर्तनकं चारु गृह्यतां जगतः पते ॥ ॐ नमो भगवते आदित्याय ॥

फल : ॐ फलान्यमृतकल्पानि स्थापितानि पुरस्तव । तेन मे सफलावाप्तिर्भवेज्जन्मनि जन्मनि ॥ ॐ नमो भगवते आदित्याय ॥

ताम्बूल : ॐ एलालवङ्गकर्पूरखादिरैश्च सपूगकैः । नागवल्लीदलैर्युक्तं ताम्बूलं प्रतिगृह्यताम् ॥ ॐ नमो भगवते आदित्याय ॥

दक्षिणा : ॐ दक्षिणा काञ्चनी देव स्थापिता पुरतस्तव । गृहाण सुमुखो भूत्वा प्रभाकर नमोऽस्तु ते ॥ ॐ नमो भगवते आदित्याय ॥

नीराजन : ॐ पञ्चवर्तिसमायुक्तं सर्वमंगलदायकम् । नीराजनं गृहाणेदं सर्वसौख्यकरो भव ॥ ॐ नमो भगवते आदित्याय ॥

विशेषार्घ्य : जानू के बल होकर विशेषार्घ्य दे – ॐ नमः सहस्रकिरण सर्वव्याधिविनाशन । गृहाणार्घ्यं मया दत्तं संज्ञया सहितो रवे ॥ ॐ नमो भगवते आदित्याय ॥ इति त्रिर्दद्यात् ।

सप्त प्रदक्षिणा : ॐ यानि कानि च पापानि ब्रह्महत्या समानि च । तानि तानि प्रणश्यन्ति प्रदक्षिण ! पदे पदे ॥

नमस्कार

ॐ नमः पंकजहस्ताय नमः पङ्कजमालिने ।
नमः पङ्‌ङ्गनेत्राय भास्कराय नमो नमः ॥
नमः सवित्रे जगदेकचक्षुषे जगत्प्रसूति स्थितिनाशहेतवे ।
त्रयीमयाय त्रिगुणात्मधारिणे विरिञ्चिनारायणशङ्करात्मने ॥
भानो भास्कर मार्तण्ड चण्डरश्मे दिवाकर ।
आरोग्यमायुर्विजयं विद्या देहि नमोऽस्तु ते ॥
नमः सर्वहितार्थाय जगदाधारहेतवे ।
साष्टाङ्गोऽयं प्रणामस्ते प्रयत्नेन मया कृतः ॥
ॐ आदित्यस्य नमस्कारं ये कुर्वन्ति दिनेदिने।
जन्मान्तरसहस्रेषु दारिद्रयं नोपजायते॥

दक्षिणा : स्वर्ण सहित युगल रक्तवस्त्र, पूर्णपात्र (तंडुलपूर्ण) लेकर दक्षिणा करे : ॐ अद्य कृतैतत् श्रीभास्करपूजायाः साद्गुण्यार्थं साङ्गफलप्राप्तये श्रीभास्कर देवप्रीतये इदं वायनं ब्राह्मणाय दातुमहमुत्सृज्ये ॥

प्रार्थना

ॐ यस्योदये स्याज्जगतः प्रबोधो यः कर्मसाक्षी भुवनस्य गोप्ता ।
कुष्ठादिकव्याधिविनाशको यः स भास्करो मे दुरितं निहन्यात् ॥

पुनः पढ़े

ॐ मन्त्रहीनं क्रियाहीनं विधिहीनं च यद्भवेत् ।
तत्सर्वं पूर्णतां यातु त्वत्प्रसादाद्दिवाकर ॥

विसर्जन : ॐ यान्तु देवगणाः सर्वे पूजामादाय मामकीम् । इष्टकामप्रसिद्धयर्थं पुनरागमनाय च ॥ ॐ साङ्गसपरिवार भगवन् श्रीभास्कर पूजितोऽसि प्रसीद क्षमस्व स्वस्थानं गच्छ ॥ इति विसर्जयेत् ।

तत्पश्चात लवण, दुग्ध, उष्णोदक आदि वर्जित छोड़कर दिन में हविष्य का एकभुक्त करे।

सारांश : इस प्रकार से यहां भगवान सूर्य की पूजा विधि दी गयी है जो भगवान सूर्य का व्रतादि के दिन विशेष रूप से उपयोगी है। प्रायः देखा जाता है कि रविवार अथवा अन्य सूर्य व्रत तो लोग करते हैं किन्तु पूजा नहीं करते। जब कि किसी भी व्रत में पूजा की विशेष महत्ता होती है और हवन भले न करे किन्तु पूजा अनिवार्य रूप से कर्तव्य होता है। यहां दी गयी पूजा विधि सूर्य व्रत करने वालों के लिये लाभकारी सिद्ध होगा।

कर्मकांड विधि में शास्त्रोक्त प्रमाणों के साथ प्रामाणिक चर्चा की जाती है एवं कई महत्वपूर्ण विषयों की चर्चा पूर्व भी की जा चुकी है। तथापि सनातनद्रोही उचित तथ्य को जनसामान्य तक पहुंचने में अवरोध उत्पन्न करते हैं। एक बड़ा वैश्विक समूह है जो सनातन विरोध की बातों को प्रचारित करता है। गूगल भी उसी समूह का सहयोग करते पाया जा रहा है अतः जनसामान्य तक उचित बातों को जनसामान्य ही पहुंचा सकता है इसके लिये आपको भी अधिकतम लोगों से साझा करने की आवश्यकता है।

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